भाई की कैंसर से मौत हुई तो जैविक खेती के जनक बने डॉक्टर जयपाल

इनके पास 20 एकड़ पुस्तैनी जमीन है। कृषि से अच्छी गुजर-बसर होती रही। बीएएमएस की डिग्री लेने के बाद क्लीनिक भी बहुत अच्छा चला। एकाएक ऐसी घटना घटी कि छह साल से चल रहा क्लीनिक बंद कर दिया और जैविक खेती के जनक बन गए। कोई भी कैंसर जैसी घातक बीमारी का असमय ग्रास न बने इसके लिए अन्य किसानों को भी जैविक खेती के प्रति जागरूक करने लगे।

हम बात कर रहे हैं जिले के गांव नगला साधान निवासी बीएएमएस डॉ. जयपाल आर्य की। इन्होंने जैविक खेती के दम पर अलग पहचान बनाई है। अब गांव-गांव, शहर-शहर घूमकर जैविक तरीके से पैदा किए गए चावल, गुड़ और अन्य सामान बेचते हैं।

भाई की मौत ने बदल दिया जीवन-

वर्ष 1996 में कैंसर से डॉ. जयपाल के बड़े भाई रघुवीर सिंह की मौत हो गई थी। वह कभी भी कोई नशा नहीं करते थे। इस घटना से डॉ. जयपाल को बड़ा धक्का लगा। भाई के कैंसर होने की वजह जाननी चाही तो डॉक्टरों और विशेषज्ञों से पता चला कि फसलों में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण कैंसर लोगों को चपेट में ले रहा है। बस इसी बात ने डॉ. जयपाल की सोच बदल दी। डॉक्टर की प्रेक्टिस छोड़ जैविक खेती शुरू कर दी। अब 20 एकड़ जमीन में जैविक खाद व जीवामृत से गेहूं, गन्ना, सब्जियां और धान की फसल उगा रहे हैं।

गांव में खोला प्राकृतिक कृषि एवं शोध संस्थान-

अन्य किसान भाइयों को प्रशिक्षित करने के लिए गांव में ही महर्षि दयानंद प्राकृतिक कृषि शिक्षण एवं शोध संस्थान बना लिया। यहां आसपास के किसानों को जैविक खेती का निश्शुल्क प्रशिक्षण देना शुरू किया। आज स्थिति यह है कि हरियाणा ही नहीं उत्तर प्रदेश और पंजाब के किसान भी प्रशिक्षण लेने को यहां पहुंच रहे हैं।

रखते हैं 10 देसी गाय-

डॉ. जयपाल फसलों पर जीवामृत का छिड़काव करते हैं। उन्होंने 10 देसी गाय रखी हुई हैं। उनके गोबर व मूत्र से तैयार जैविक खाद के साथ-साथ गोबर, मूत्र, गुड़, बेसन व पानी के मिश्रण से जीवामृत भी तैयार करते हैं। उनके मुताबिक एक गाय के गोबर व मूत्र से पांच एकड़ में खेती की जा सकती है।

धान का 20 फीसद अधिक दाम देगी सरकार-

राज्य में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने डॉ. जयपाल को 6 फरवरी को अतिथि बनाया। अधिकारियों को साथ लेकर उन्होंने जैविक उत्पादों के बेचने में आ रही दिक्कतों पर भी चर्चा की। इस पर मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को उनके द्वारा तैयार बासमती धान और अन्य उत्पादों को बाजार से 20 फीसद अधिक दाम पर खरीदने के निर्देश दिए।

खुद करते हैं मार्केटिंग-

74 वर्षीय डॉ. जयपाल अपनी खेती के उत्पादों की मार्केटिंग खुद करते हैं। उनका कहना है कि उनका मकसद केवल लाभ कमाना नहीं, बल्कि जैविक खेती को परंपरागत बनाना और हर किसान तक पहुंचाना है। इन उत्पादों को हर परिवार तक पहुंचाने के लिए ही वह खुद बेच रहे हैं। हालांकि कई बड़ी कंपनियों ने उन्हें अपने साथ जोडऩे की पेशकश की, लेकिन सभी प्रस्ताव उन्होंने ठुकरा दिए। उनका तर्क है कि वे इससे रुपये तो कमा सकते हैं, लेकिन किसान भाइयों को जागरूक नहीं कर सकते।