‘लाल किला’ को ढहाने के लिए BJP ने अपनाई थी उनकी ही ट्रिक, ये थी पूरी प्लानिंग

खबरें अभी तक। वामदलों की राजनीति को करीब से समझने वाले बताते हैं कि उनकी सबसे बड़ी ताकत कैडर है. कैडर की ताकत के दम पर ही वे पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा,

इस वजह से खास है बीजेपी की यह जीत
बीजेपी और वामदलों के बीच विचारधार की लड़ाई है. दोनों पार्टियों की विचारधारा बिल्कुल ही अलग है. बीजेपी लंबे समय से कोशिश में रही है कि वह वामदलों को परास्त करे, त्रिपुरा में पहला ऐसा मौका रहा जब बीजेपी ने वामदलों को सीधे मुकाबले में चित किया है. संघ में लंबे समय तक रहे स्वंयसेवक की भूमिका में रहे सुनील दवेधर को त्रिपुरा की जिम्मेदारी दी गई थी. सुनील देवधर करीब 600 दिन त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में रहे और बीजेपी का कैडर मजबूत करने में अहम रोल निभाया.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने त्रिपुरा में युवा नेता बिप्लव देब को प्रदेश की कमान सौंपी, जो कभी सांसद गणेश सिंह के पीए थे. उसके बाद संगठन से जुड़े और मोदी के वाराणसी संसदीय सीट के प्रभारी रहे सुनील देवधर को त्रिपुरा का प्रभारी बनाया. फिर अमित शाह ने यूपी चुनाव की तर्ज पर त्रिपुरा में भी बूथ और पन्ना प्रमुख की रणनीति को कारगर ढंग से लागू कराया.

हमेशा की तरह अमित शाह ने त्रिपुरा में भी चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झों दी थी. बीजेपी के 52 केंद्रीय मंत्रियों और 200 से ज्यादा सांसदों और नेताओं से इस छोटे से राज्य में रैलियां कराई गई थीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य में 4 चुनावी सभाएं कीं. खुद अमित शाह त्रिपुरा में छह रातें बिताई. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से 7 जगहों पर जनसभाएं और 4 रोड शो कराई गई, जिसका बीजेपी को फायदा मिला. इस पूरी प्लानिंग का असर भी दिखा और त्रिपुरा 7वां गैर हिंदी राज्य बन गया जहां बीजेपी की सरकार बनी है.

केरल जैसे राज्यों में लंबे समय तक राज करती रही है. त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने वापदलों की की ट्रिक अपनाकर उन्हें हराया है. संघ की मदद से बीजेपी ने पिछले तीन साल में त्रिपुरा में विशालकाय कैडर खड़ा कर लिया था. 2014 के लोकसभा चुनाव में जीत के बाद बीजेपी ने त्रिपुरा में मंडल स्तर पर मोर्चों का गठन किया था, फिर बूथ कमेटियों का गठन शुरू हुआ.

बताया जा रहा है कि बीजेपी ने उत्तर प्रदेश की तर्ज पर त्रिपुरा में 3214 बूथों पर ‘वन बूथ-टेन यूथ’ का फॉर्मूला अपनाया. यानी हर बूथ पर बीजेपी का 10 युवा कार्यकर्ता मौजूद था. साथ ही हर बूथ पर 10-10 महिलाएं, एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक और किसानों को भी जोड़ा. 2700 बूथों पर 10-10 महिलाओं की टीम तैयार की. इसके अलावा, त्रिपुरा वोटर लिस्ट के कुल 48000 पन्नों में से 42,000 पन्नों पर कार्यकर्ता तैनात किए. यानी एक पेज के 60 वोटर पर एक भाजपा कार्यकर्ता तैनात था. जिसकी ड्यूटी एक पखवाड़े में दो बार सभी वोटर से मिलकर तीन बिंदुओं पर बात करना था. इसी तरह त्रिपुरा में भाजपा ने क्षेत्रीय दल आईपीएफटी से गठबंधन कर 20 आरक्षित आदिवासी सीटों पर कब्जा किया.