जूडो में स्वर्ण पदक जीतने वाली दिव्यांग जानकी को है खाने के लाले, अब बकरी चराने को मजबूर

खबरें अभी तक।  सिहोरा के कुर्रे गांव की जानकी बाई गोंड। 24 साल की उम्र में जूडो का जाना पहचाना नाम। 2017 में उज्बेकिस्तान के ताशकंद में एशिया एंड ओशियाना चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक। ब्लाइंड एंड डेफ जूडो चैंपियनशिप में 2016 में रजक और 2017 में स्वर्ण पदक जीता और प्रदेश का नाम रोशन किया। लेकिन गरीबी ने पीछा नहीं छोड़ा।

तमगे मिलते रहे पर मदद के हाथ आगे नहीं बढ़े। अब जानकी का चयन तुर्की में होने ब्लाइंड जूडो विश्व कप के लिए किया गया है। यह विश्व कप तुर्की के अंतालया में 19 से 26 अप्रैल में आयोजित है। अपनी हिम्मत व लगन से जानकी वर्ल्ड कप में स्थान बनाने में सफल तो हो गईं हैं, लेकिन न तो जानकी को ट्रेनिंग मिल रही है और न ही पौष्टिक आहार। पौष्टिक तो दूर नियमित दाल-चावल, सब्जी-रोटी भी खाने को घर में नहीं है।

राष्ट्रीय चैंपियनशिप में स्वर्ण बना आधार-

1 से 6 फरवरी तक लखनऊ में इंडियन ब्लाइंड स्पोर्ट्स एसोसिएशन द्वारा ब्लाइंड राष्ट्रीय जूडो प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। इसमें जानकी ने स्वर्ण पदक प्राप्त किया है। इसी आधार पर जानकी का चयन विश्व कप के लिए किया गया। मप्र से तीन नेत्रहीन जूडो खिलाड़ियों का चयन हुआ है, जिनमें से एक नेत्रहीन जानकी बाई गोंड है।

अभी शुरू नहीं हुई ट्रेनिंग-

जानकी को कुर्रे ग्राम से बाहर लाकर यहां तक पहुंचाने वाले अंतरराष्ट्रीय एनजीओ साइट सेवर और तरुण संस्कार के सदस्य राकेश सिंह का कहना है कि अप्रैल में होने वाले वर्ल्डकप में अच्छे प्रदर्शन के लिए जानकी की ट्रेनिंग अभी से शुरू हो जाना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है क्योंकि संस्था के पास अभी तक कोई ट्रेनिंग सेंटर नहीं है और नियमित कोच भी नहीं है। समय-समय पर जानकी को ट्रेनिंग के लिए संस्था द्वारा बाहर भेजा जाता है। तुर्की भेजने के पहले भी 10 दिन के लिए जानकी को ट्रेनिंग पर भेजा जाएगा। अभी तो जानकी अपनी बहन के साथ घर ही कुछ अभ्यास कर लेती हैं।

आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर-

जानकी के पिता रामगरीब मजदूरी करते हैं। मां पुनिया बाई दिव्यांग हैं और बकरी चराती हैं। एक बहन है वह भी दिव्यांग ही है। ऐसे में जानकी नेत्रहीन होने के बावजूद भी घर के पूरे काम के साथ बकरियों की देखरेख भी करती हैं।

भारतीय जुडोकाओं को शिविर में विश्व स्तरीय सुविधा-

दिलचस्प है कि दिव्यांग खिलाड़ियों को जहां अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप में भेजने भर की औपचारिकता होती है। वहीं दूसरी तरह भारतीय जूडो फेडरेशन के बैनर तले अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में भाग लेने वाले जुडोकाओं को प्रशिक्षण शिविर में विश्व स्तरीय की सुविधाएं उपलब्ध हैं। अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप के लिए जुडोका मैट पर अभ्यास करते हैं और एनआईएस कोच उन्हें ट्रेनिंग, कमजोर पक्ष पर विशेष ध्यान, प्रतिद्वंदी पर वार सहित विभिन्न् गुर सिखाते हैं। खास बात- विभिन्नचैंपियनशिप के हिसाब से शिविर लगते हैं।

सुविधाएं-

दिव्यांग खिलाड़ियों की तुलना में नियमित अभ्यासरत जुडोकाओं को फाइट के लिए जूडो गी (सफेद किट), ब्लेजर, ट्राउजर व शूज उपलब्ध कराए जाते हैं।

डाइट-

एक जुडोका पांच मिनट की एक फाइट के लिए शिविर में एक निश्चित डाइट चार्ट का अनुसरण करता है। ताकि विश्व स्तरीय फाइट के लिए स्टेमिना बना सके। जूनियर खिलाड़ियों को प्रोटीन की आवश्यकता होती है। वहीं सीनियर खिलाड़ियों को संतुलित डाइट दी जाती है