बदलता बिहार: लड़कियों को लेकर बदली सोच, अब बेटा नहीं बेटियां ले रहे गोद

बिहार में बेटियों के प्रति समाज की परंपरागत सोच बदल रही है। मुख्यमंत्री कन्या सुरक्षा योजना हो या फिर केंद्र प्रायोजित ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान का सकारात्मक प्रभाव अनाथ बच्चों को गोद लेने वालों पर भी पड़ा है। यही कारण है कि जिन बेटियों को कभी जन्म लेते ही मार दिया जाता था अब लोग गोद लेने के लिए कतार में खड़े हैं। ‘बेटे नहीं, बेटी चाहिए’ के लिए आवेदन करने वालों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है।
समाज कल्याण विभाग से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2017-18 में जनवरी तक 164 अनाथ बच्चों को गोद लिया गया। इसमें 124 लड़कियां हैं। जबकि मात्र 40 लड़के ही गोद लिये गए। बेटियों को गोद लेने संबंधी आवेदनों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अभी 410 आवेदन में से 307 आवेदन अनाथ बच्चियों के लिए आए हैं।
सीएआरए ने भेजा प्रशंसा पत्र 
लड़कियों के प्रति समाज में बदलाव लाने के सरकारी प्रयासों की केद्र सरकार ने तारीफ की है। हाल में समाज कल्याण विभाग को केंद्र सरकार की एजेंसी सीएआरए (सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स एजेंसी) ने पत्र के जरिये लड़कियों को गोद लेने वालों को प्रोत्साहन के लिए तारीफ की है।
डॉक्टर-इंजीनियर भी गोद लेने वालों में शामिल
सिक्किम के डॉ.एमपी कुलश्रेष्ठ दंपती निसंतान हैं। उन्होंने हाल में बेटी गोद लेने के लिए राज्य सरकार के पास आवेदन किया है। इसी तरह इंदौर निवासी इंजीनियर रमण दंपती ने भी बेटी को गोद लेने के लिए आवेदन दे रखा है। कोलकाता के दत्ता दंपती ने निसंतान होने का हवाला देते हुए एक बेटी का लालन-पालन करने की ख्वाहिश रखते हुए आवेदन सरकार को दिया है।
आयकर विभाग में अधिकारी और दिल्ली निवासी सीपी मिश्रा ने बच्चा गोद लेने के लिए आवेदन किया और बेटी को ही चुना है। मणिपुर राज्य की एक महिला इंजीनियर जो नोएडा स्थित डेनमार्क की कंपनी में कार्यरत है ने भी चार माह पहले बेटी गोद लेने के लिए आवेदन दिया है