हर साल साइबर अपराध से दुनिया को लगती है 600 अरब डॉलर की चपत

खबरें अभी तक। दुनियाभर में तेजी से बढ़ते साइबर अपराध से सालाना 600 अरब डॉलर की वैश्विक चपत लगती है। यह दावा ग्लोबल साइबर सिक्योरिटी फर्म मैकएफी और सेंटर फॉर स्ट्रेटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (सीएसआइएस) ने इकोनॉमिक इंपैक्ट ऑफ साइबरक्राइम-नो स्लोइंग डाउन नामक रिपोर्ट में किया है।

वैश्विक अर्थव्यवस्था में साइबर अपराध से सालाना लगने वाली छह सौ अरब डॉलर की रकम 80 देशों की अर्थव्यवस्था के बराबर है। इन देशों में मालदीव, ग्रीनलैंड, भूटान, अफगानिस्तान, जिम्बॉब्वे, अफगानिस्तान समेत कई अफ्रीकी देश शामिल हैं।

रिपोर्ट के अनुसार साइबर अपराध के मामले में रूस सबसे आगे है। रूस वित्तीय संस्थानों को साइबर अपराध के जरिये सबसे अधिक निशाना बनाता है। इसके पीछे रूसी हैकरों की कुशलता और पश्चिमी देशों के कानूनों को धता बताने की उसकी फितरत है।

उत्तर कोरिया दूसरे स्थान पर-

साइबर अपराध करने में रूस के बाद उत्तर कोरिया का स्थान है। वह साइबर अपराध से प्राप्त रकम और क्रिप्टोकरेंसी यानी ऑनलाइन वर्चुअल मुद्रा को अपने शासन को सशक्त बनाने में इस्तेमाल करता है। 2017 में दुनियाभर में हुए वन्नाक्राई रैनसमवेयर साइबर हमले में भी अमेरिका की जांच में उत्तर कोरिया को ही आरोपी ठहराया गया था। रूस और उत्तर कोरिया के अलावा साइबर अपराध करने वाले देशों में ब्राजील, भारत और वियतनाम का नाम भी है। वहीं चीन साइबर जासूसी में अव्वल है।

नई तकनीक अपना रहे अपराधी-

रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में साइबर अपराध फैलाने के लिए साइबर अपराधी नई-नई तकनीकों का अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे उन्हें साइबर अपराध करने में मदद मिल रही है। वे तकनीक की मदद से लाखों लोगों को एक साथ रैनसमवेयर (फिरौती) हमले की चपेट में ले रहे हैं। यह हमले स्वचालित होते हैं। वे क्रिप्टोकरेंसी में फिरौती मांगते हैं। इससे उनके पकड़े जाने का डर भी नहीं रहता।