खतरों से खेलकर जलती आग में प्रह्लाद को बचाते हैं आज भी किनाला के युवा

ख़बरें अभी तक। हिसार: वर्षों से चली आ रही होलिका दहन की परंपरा को आज भी किनाला गांव में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। होलिका दहन से पहले गांव की महिलाएं इकट्ठी होकर होलिका का पूजन करती हैं और उसके बाद 36 बिरादरी के भाई के चारे के साथ होलिका का दहन किया जाता है। इस होलिका दहन में होलिका की आग बुझने से पहले प्रल्हाद रूपी लक्कड़ को निकाला जाता है और उसे फिर गांव के तालाब में विसर्जित किया जाता है।

वर्षों से चली आ रही परंपरा को निभाने के लिए आज भी किनाला गांव के युवा खतरों से खेलते हैं होलिका दहन में आग बुझने से पहले अपने प्रयासों से प्रह्लाद को बचाने के लिए जलती आग में अपना पराक्रम दिखाते हैं और जलती आग से प्रह्लाद को निकालकर गांव के तालाब में विसर्जित करते हैं। होलिका दहन से 7 दिन पूर्व प्रह्लाद रूपी एक लक्कड़ गाड़ा जाता है और जिसके बाद चारों और लकड़ियों की होलिका बनाई जाती है। होलिका दहन के दिन सूर्यास्त के समय इस का दहन करके प्रह्लाद को बचाया जाता है।

गांव के युवा सतीश ने बताया कि होलिका दहन के दिन गांव के 36 बिरादरी के लोग इकट्ठे होकर होलिका का दहन करते हैं और जलती आग में प्रह्लाद को निकाला जाता है। उसके बाद फिर उसे गांव के तालाब में विसर्जित किया जाता है। होलिका दहन से पहले महिलाएं पूजा करती हैं और बड़े धूमधाम से होलिका का दहन किया जाता है। होलिका दहन से अगले दिन गांव में दुलेंडी फ़ाग खेला जाता है जो भाईचारे का प्रतीक है।