भारत बनने जा रहा है नॉन कम्युनिकेबल डिसीसिस का (स्ट्रोक) कैपिटल

खबरें अभी तक। विश्व में स्ट्रोक की समस्या बढ़ती जा रही है यही कारण है कि विश्वभर में कई लोग या तो अपनी जान गवाँ बैठते है या कई विकलांग हो जाते है। वर्ल्ड स्ट्रोक आर्गेनाइजेशन के दावों की बात करें तो स्ट्रोक दूसरे सबसे ज्यादा मौत के कारणों में से एक है। जहाँ एक वर्ष में 80 मिलियन लोग पुरे विश्व ब्रेन स्ट्रोक के शिकार हुए है वहीँ 50 मिलियन लोग हमेशा के लिए विकलांग हो गए है और भारत की बात करें तो जिनमें से 1.8 मिलियन स्ट्रोक के शिकार लोग भारत में है जिनमें से 0.7 मिलियन लोग रोज अपनी जान गवां रहे है जोकि चिंता का विषय बन चूका है।

आज के समय में ब्रेन स्ट्रोक के मामले अधिकतर देखे जा रहे है। जहाँ केवल पीजीआई में रोजाना 600 स्ट्रोक के मामले आते है।  आने वाले 5 सालों में शायद भारत नॉन कम्युनिकेबल डिसीसिस का कैपिटल बन सकता है. स्ट्रोक की बीमारी लोगों में बढ़ती ही जा रही है। जिसकी भारत में एवरेज एज 55 है जबकि विदेशों में इस की उम्र 65 साल है और यह काफी चिंताजनक बात है।

अब तक ऐसा माना जाता था कि ब्रेन स्ट्रोक सिर्फ बुजुर्गो को ही होता है, पर आधुनिक जीवनशैली की वजह से मिडिल एज ग्रुप के लोगों में भी यह समस्या देखने को मिलती है। चंडीगढ़ के पीजीआई द्वारा किए गए सर्वेक्षण के मुताबिक भारत में प्रति वर्ष 2 लाख लोग ब्रेन स्ट्रोक के शिकार होते हैं, लेकिन जागरूकता न होने की वजह से उनकी यह समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है, जो कई बार जानलेवा साबित होती है। इसलिए बेहतर यही होगा कि इस समस्या के कारण, लक्षण और बचाव के तरीकों को समझते हुए पहले से ही पूरी सावधानी  बरती जाए।

पीजीआई के न्यूरोलॉजी विभाग के डॉक्टर धीरज खुराना बताते है कि पीजीआई की इमरजेंसी में एक वर्ष में 320 मरीज स्ट्रोक से सम्बंधित आते है जिनमें से केवल 45 प्रतिशत ही इलाज करा पाते है वहीँ 36 प्रतिशत लोग आर्थिक तंगी के कारण इलाज नहीं करवा पाते। उन्होंने बताया कि भारत में  की समस्या दिनोदिन बढ़ रही है जिसका कारण है कि लोग यहाँ अपने स्वास्थ्य के लिए चिंतित नहीं है और न ही जागरूक इसी को देखते हुए पीजीआई द्वारा स्ट्रोक प्रोग्राम स्ट्राइक आउट कैम्पेन हर साल चलाया जाता है।

क्लोजिंग

फिलहाल हर छठा व्यक्ति लाइफ में कभी न कभी स्ट्रोक झेलता है। दुनियाभर में हर छ सेकंड में एक व्यक्ति की स्ट्रोक से मौत होती है। अगर बचाव व इलाज के बारे में लोग जागरूक हो जाएं तो बहुत से लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती है।