सेब पर संकट के बादल, होटल में बैठकें कर नही हल होंगी बागवानों को समस्याएं

ख़बरें अभी तक। शिमला: हिमाचल की अर्थव्यवस्था में सेब का कारोबार 4 हज़ार करोड़ से ज़्यादा का है। लेकिन अफ़सोफ बागवानी विभाग की सुस्त कार्यप्रणाली सेब बागवानों पर भारी पड़ रही है। सेब बाग़वानी के लिए देश विदेश से करोड़ों की परियोजनाएं आ रही है। बाबजूद इसके धरातल पर कुछ नहीं हो रहा है। ये हम नहीं कह रहे है बल्कि शिमला के बागवान अपना दर्द बयां कर रहे है। दरअसल आज बागवानी विभाग ने शिमला के एक आलीशान हॉटेल में बागवानों के लिए एक वर्कशॉप रखी जिसको लेकर बागवानों की नाराज़गी साफ तौर से देखने को मिली।

कोटगढ़ के बागवान दीपक सिंघा कहते है कि शिमला के होटेल में बागवानों के लिए वर्कशॉप लगाना बेमानी है। बागवानों की धरातल पर अपनी दिक्कतें है। जिनसे बागवानी विभाग का दूर दूर तक कोई नाता नहीं है। विभाग के वैज्ञानिक न तो हिमाचल की भूगौलिक परिस्थितियों के मुताबिक कोई शोध कर रहे है न ही उनके अनुसार सेब की आधुनिक किस्मों पर काम कर रहे है। जो वास्तव में बागवान है वह तो 365 दिन अपने खेतों में व्यस्त रहते है। होटलों की बैठकों में तो माल रोड़ के बागवान आते हैं।

उधर बागवान संदीप व नरेश कहते है कि अब बागवानी पर लागत ज़्यादा व मुनाफ़ा कम हो रहा है। बगीचों के सेब के पेड़ काफ़ी पुराने हो चुके हैं। इसलिए विभाग से सेब के पौधे मांगे जाते हैं तो 100 मांग के बदले 25 ही पौधे मिलते है। बागवानी विभाग को ग्रामीण स्तर पर कमेटियां गठित कर बागवानों की समस्याओं के आधार पर हल खोजने चाहिए। ताकि सेब की फ़सल पर मंडरा रहे संकट के बादल छंट सके।