कश्मीर का यह युवा, आतंकवादियों को देता है घर वापसी की प्रेरणा

खबरें अभी तक।सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते. इसी विचार पर चलते हुए जम्मू-कश्मीर पुलिस आतंकवाद की राह छोड़ चुके कश्मीरी युवाओं के लिए घर वापसी कार्यक्रम चला रही है. इसके तहत आतंकवाद के जबड़े से छूटकर आए कश्मीरी युवाओं को सुनहरे भविष्य के सपने दिखाए जाते हैं और उन सपनों को पूरा करने की राह दिखाई जाती है.

ये कहानी एक ऐसे कश्मीरी युवा की है जो पाकिस्तानी आतंकवादियों के बहकावे में आकर आतंकवाद की राह पर मुड़ गया था, लेकिन अब वो आतंकवाद की पगडंडी छोड़कर मुख्यधारा में लौटने वाले कश्मीरी युवाओं का पोस्टर ब्वॉय बन चुका है.

आपको शायद याद होगा कि पिछले साल हिजबुल कमांडर सबजार भट्ट के जनाजे के वक्त भीड़ में नजर आने वाले आतंकी दानिश भट्ट ने हंदवाड़ा पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया था. इसके बाद वो सामान्य जिंदगी जी रहा है. 22 साल का दानिश अहमद भट्ट अपने नए जीवन में बेहद खुश है. वो उन दिनों की यादों पर मिट्टी डाल रहा है, जिन दिनों वो सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी को छोड़कर हिजबुल मुजाहिदीन में आतंकी बनकर भर्ती हो गया था.

हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर सबजार भट्ट के जनाजे के वक्त भीड़ में शामिल दानिश अहमद की तस्वीरें सामने आईं तो मीडिया में खूब शोर मचा था. बाद में दानिश के हिजबुल मुजाहिदीन में भर्ती होने की खबर ने उसके परिवार को तोड़कर रख दिया. लेकिन अब दानिश आतंक की राह से अपना नाता तोड़ चुका है और जम्मू-कश्मीर पुलिस की घर वापसी प्रोग्राम का हिस्सा है. वो उस दिन को कोसता है जब उसने आतंकी बनने का फैसला किया था.

दानिश अहमद जब हिजबुल मुजाहिदीन का आतंकी बना तब वो देहरादून के दून पीजी कालेज ऑफ एग्रीकल्चर साइंस एंड टेक्नालॉजी में बीएससी का छात्र था. इसके बाद जुलाई 2017 में दानिश ने हंदवाड़ा में पुलिस और 21 राष्ट्रीय राइफल के सामने समर्पण कर दिया था. सरेंडर के बाद दानिश ने माना था कि उसे उत्तरी कश्मीर में युवाओं को आतंकी बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी.

दानिश का कहना है कि दक्षिणी कश्मीर में आतंकियों से साथ कुछ समय बिताने के बाद उसे आतंकवाद में शामिल होने की गलती का अहसास हुआ. हाल ही में एंटी टेरर ऑपरेशन्स के लिए गैलेंट्री अवॉर्ड से नवाजे गए साबिर खान को ये जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वो आतंकवाद की राह छोड़ने वाले दानिश को दोबारा मुख्यधारा की जिंदगी जीने लायक बना सकें.

साबिर खान रोज दानिश से मिलते हैं और तबतक मिलते रहेंगे जबतक कि उन्हें पूरा भरोसा ना हो जाए कि दानिश के दिमाग से अब आतंकवादी सोच हमेशा-हमेशा के लिए निकल चुकी है. दानिश कब सामान्य जिंदगी में लौटेगा. इसका फैसला साबिर खान को ही करना है.

दानिश अब अपने पिता के बिजनेस में हाथ बंटाता है और अपनी पढ़ाई दोबारा शुरू करने वाला है. उसे उम्मीद है कि उसका अतीत उसके सुनहरे भविष्य के आड़े नहीं आएगा. दानिश अकेला कश्मीरी युवा नहीं है जिसने पहले आतंकवाद से प्रभावित होकर बंदूक उठाई फिर बंदूक छोड़कर दोबारा अपने किताबों को थामकर मिसाल पेश किया. दानिश अब उन कश्मीरी युवाओं के लिए प्रेरणा भी है जो आतंकवाद के दलदल में फंसकर अपनी और दूसरों की जान के दुश्मन बन गए हैं.

 

जब से कश्मीर घाटी में आतंकवादियों ने दोबारा अपनी जड़ें जमानी शुरू की हैं तब से जैश ए मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों की बुरी नजर कश्मीरी युवाओं पर रही है. जम्मू-कश्मीर पुलिस के मुताबिक, साल 2016 में कश्मीर घाटी में करीब 70 स्थानीय युवा आतंकवादी विचारधारा से प्रभावित होकर आतंकवादी बन गए थे. वहीं, साल 2017 में ये आंकड़ा दोगुना हो गया. सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक पिछले साल कश्मीर में कम से कम 130 स्थानीय युवा आतंकवादी संगठनों में शामिल हुए.

 

जम्मू-कश्मीर पुलिस मानती है कि पाकिस्तान से आने वाले आतंकवादी उसके लिए इतना बड़ा सिरदर्द नहीं हैं जितना वो कश्मीरी युवा हैं जो आतंकवादी बनकर अपने ही लोगों के दुश्मन बन जाते हैं. यही वजह है कि जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कश्मीरी युवाओं को आतंकवादी विचारधारा से बचाने के लिए मुहिम चलाई है. जो दानिश अहमद भट्ट जैसे भटके हुए कश्मीरी युवाओं के लिए नई जिंदगी के दरवाजे खोलती है.