जानकारों की राय- बजट में इनकम टैक्स को लेकर न रखें बड़ी रियायत की उम्मीद

खबरें अभी तक।केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली एक फरवरी को आम बजट पेश करेंगे तो वो 2019 लोकसभा चुनाव से पहले इस सरकार का आखिरी पूर्ण बजट होगा. इस नाते लोग उम्मीद लगाए बैठे हैं कि सरकार दरियादिली दिखाएगी और टैक्स में उन्हें तमाम राहत मिलेंगी. कई तरह के अप्रत्यक्ष टैक्स की जगह अब गुड्स एंड सर्विस टैक्स (GST) ने ले ली है.

ऐसे में अब सबकी निगाहें प्रत्यक्ष टैक्स यानी इनकम टैक्स पर लगी हुई हैं. बजट में कहां-कहां, किसे-किसे कितनी राहत मिल सकती है, इसको लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. हालांकि चुनावी साल और लोगों की तमाम उम्मीदों के बावजूद जानकार ये कहते हैं कि इनकम टैक्स में थोड़ी बहुत रियायत भले मिल जाए, कोई बड़ी राहत या छूट की उम्मीद करने वालों को शायद मायूसी ही होगी.

ज्यादातर विशेषज्ञ ये मानते हैं कि इनकम टैक्स के दायरे में आने के लिए ढाई लाख रूपए से ऊपर की सालाना आमदनी की जो मौजूदा सीमा है उसमें शायद कोई बदलाव नहीं होगा. इसकी वजह ये है कि इस सीमा को बढ़ाने से सीधे-सीधे बहुत से लोग टैक्स के दायरे से बाहर हो जाएंगे.

लेने-देन पर निगाह रखना आसान

इनकम टैक्स के विशेषज्ञ गोपाल केडिया कहते हैं कि नोटबंदी के बाद टैक्स के दायरे में बहुत से नए लोग पहली बार आए हैं और सरकार बिल्कुल नहीं चाहेगी कि ये लोग अब इनकम टैक्स के दायरे से बाहर होकर नजरों से ओझल हों. सरकार ऐसा मानती है कि इनमें से बहुत से लोगों की आमदनी असल में काफी ज्यादा है और अगर वो इनकम टैक्स के दायरे में होगें तो उनके लेन-देन पर निगाह रखना आसान होगा.

जानकारों का मानना है कि 5 से 10 लाख सलाना आमदानी वाले लोगों को सबसे ज्यादा राहत मिल सकती है. ये लोग अभी 20 प्रतिशत इनकम टैक्स के दायरे में आते हैं और उम्मीद की जा रही है कि इन लोगों के लिए फिर से 10 प्रतिशत के टैक्स स्लैब की वापसी हो सकती है. ऐसोचैम के चीफ एडवाइजर डॉ. जी. पी. श्रीवास्तव कहते हैं कि इस वर्ग में बड़ी संख्या में वेतनभोगी मध्यवर्गके लोग आते हैं, जो टैक्स की मार से कभी बच नहीं पाते इसलिए उनको राहत देने के बारे में सरकार जरूर गंभीरता से विचार करेगी.

स्टैंडर्ड डिडक्शन की वापसी संभव

चर्चा ये भी है कि मध्यवर्ग को राहत देने के लिए मानक कटौती (स्टैंडर्ड डिडक्शन) की भी वापसी हो सकती है जिसे 2007 में खत्म कर दिया गया था. इसका मतलब ये होगा कि आपकी आमदनी के एक हिस्से को सरकार जरूरी खर्च मानकर उसे सीधे-सीधे आपकी आमदनी से हटा देगी ताकि टैक्स का बोझ कम हो सके. मेडिकल खर्च के लिए मिलने वाली छूट का दायरा भी 1999 से लेकर अब तक 15,000 रूपए ही है जिसे बढ़ाए जाने की भी पुरजोर मांग हो रही है.

टैक्स विशेषज्ञ गोपाल केडिया कहते हैं कि जीएसटी लागू होने के बाद अब सरकार का जोर डायरेक्ट टैक्स में भी नियमों को सीधा और सरल करने पर होगा, क्योंकि पेचीदा टैक्स के नियमों से फायदा कम और नुकसान ज्यादा हुआ हैं. इसलिए सरकार छूट और रियायतों में उलझने के बजाय टैक्स सुधार पर ध्यान देगी.

सरकार के सामने चुनौतियां

सरकार की सबसे बडी चिंता ये है कि तमाम कोशिशों के बावजूद रोजगार से अवसर नहीं बढ़ पा रहे हैं और चुनाव के पहले ये बात खतरनाक साबित हो सकती है. जी. पी. श्रीवास्तव कहते हैं कि इसके लिए सरकार बजट में खर्च बढ़ाएगी, जहां ज्यादा लोगों को रोजगार मिलता है जैसे खेती, शिक्षा, ट्रांसपोर्ट, हेल्थ और छोटे उद्योग. केडिया भी मानते हैं कि इस बजट में सोशल सेक्टर में खर्च बढ़ाना सरकार की मजबूरी होगी क्योंकि किसानों की आमदनी को लेकर इकोनॉमिक सर्वे में भी आगाह किया गया है.

बजट को लेकर एक और चर्चा खूब हो रही है और वो है शेयर बाजार में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स के वापसी की. फिलहाल एक साल के बाद बेचे गए किसी शेयर पर कोई टैक्स नहीं लगता है. जानकारों का कहना है कि इस बार इस पर लॉन्ग ट्रम कैपिटल टैक्स लग सकता है.