आखिर क्यों बनती है बांस की कावड़, पुराणों में है वर्णन पहली बांस की कावड़ परशुराम ने शिव को चढ़ाई थी

ख़बरें अभी तक। कावड़ यात्रा को देश की सबसे बड़ी धार्मिक यात्रा माना जाता है करोड़ों की तादात में शिवभक्त कावड़िए हरिद्वार से गंगा जल भरकर भगवान शिव को अर्पण करने अपने गंतव्य की ओर जाते हुए जिस कावड़ को शिव भक्त अपने कांधे पर रखकर गंगा जल भरकर जाते हैं उस कावड़ को बांस से बनाया जाता है। मान्यता है बांस शिव को अति प्रिय होता है। इसलिए कावड़ को बांस से ही बनाया जाता है। बांस को हिंदू धर्म शास्त्रों में सबसे उपयोगी माना गया है बांस की कावड़ का पुराणों में भी वर्णन है। पहली बांस की कावड़ परशुराम भगवान ने हरिद्वार से जल भरकर पुरा महादेव में चढ़ाई थी। इसलिए बांस की कावड़ से गंगाजल ले जाने की मान्यता है आखिर क्यों बनती है बांस की कावड़ पढ़िए…

कावड़ बनाने के लिए बांस का इस्तेमाल किये जाने पर प्रख्यात ज्योतिषाचार्य प्रतीक मिश्रपुरी का कहना है कि पुराणों में इसका वर्णन है कि सर्वप्रथम परशुराम भगवान ने बांस की कावड़ बनाकर उसमें हरिद्वार से गंगाजल भरकर पुरा महादेव में चढ़ाई थी परशुराम भगवान ने बांस के खपचो से कावड़ बनाई थी बांस की कावड़ इसलिए बनाई जाती है क्योंकि बांस का एक बार प्रयोग करने के बाद दोबारा प्रयोग नहीं किया जाता है और जब इंसान की मृत्यु के बाद कपाल क्रिया की जाती है तो वह बांस की लकड़ी से पूर्ण की जाती है इसके बाद बांस का दोबारा उपयोग नहीं होता है।

प्रतीक मिश्रपुरी का यह भी कहना है कि बांस भगवान शिव को अति प्रिय है इसलिए बांस की कावड़ में जल भरकर भगवान शिव को चढ़ाया जाता है बांस के अंदर एक मोती होता है उसको बंसलोचन बोला जाता है जब इसको भगवान शिव के ऊपर चढ़ाया जाता है तो जो कमल दल पुष्प मानसरोवर में खिलता है उसको चलाने से जितने पुण्य की प्राप्ति होती है उतनी ही बंसलोचन को शिव पर चढ़ाने की होती है बंसलोचन भगवान श्री कृष्ण ने भी शिव पर चढ़ाया था तभी उनको सुदर्शन चक्र की प्राप्ति हुई थी।

वहीं पुराणों से अलग बांस की कावड़ का एक अलग महत्व भी है बांस की कावड़ बनाने वाले कारीगरों का कहना है कि बांस की कावड़ इसलिए बनाई जाती है यह बारिश में कम भीगती है और भीगने के बाद इसमें ज्यादा वजन भी नहीं होता है जिससे कांवड़ियों को कांधे पर कावड़ ले जाते हुए परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है बांस लकड़ियों से काफी मजबूत भी होती है। इसमें काफी लचक होती है इसमें जितना भी गंगाजल भरकर कांवरिया ले जाना चाहते हैं वो आसानी से ले जा सकते हैं। हरिद्वार में कांवड़ बनाने में जितना भी बांस लगता है वो सब आसाम से आता है एक कावड़ हमे तकरीबन 160 रूपए की पड़ती है और पूरे कांवड़ मेले में करोड़ों रुपए का बांस लग जाता है।

कई किलोमीटर तक कावड़ कांधे पर रखकर कावड़िये पैदल यात्रा करते हैं और शिव की भक्ति में इतने रम जाते हैं कि उनको थकान का अहसास ही नहीं होता। कावड़ियों के लिए भी बांस की कावड़ किसी वरदान से कम नहीं है। बांस की कावड़ लचीली होती है और उससे कांवरियों को कम परेशानी का सामना करना पड़ता है। कांवरियों का कहना है कि बांस हिंदू धर्म शास्त्रों में अच्छा माना जाता है और इससे बनी कावड़ को ले जाने से हमें किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है बांस की कावड़ लचीली होती है बांस की कावड़ का प्रयोग सदियों से होता आया है भगवान परशुराम ने भी बांस की कावड़ का ही प्रयोग किया था इसलिए हम बांस से बनी कावड़ में गंगाजल भरकर अपने अपने गंतव्य पर जाकर महादेव का जलाभिषेक करते हैं।

बांस का प्रयोग हिंदू धर्म को मानने वाले जन्म से मृत्यु होने तक करते हैं पुराणों में भी बांस को सबसे अच्छा माना गया है भगवान शिव को भी बांस अति प्रिय है इसलिए बांस से बनाई हुई कावड़ को कावड़िए हरिद्वार से गंगाजल भरकर ले जाते हैं व् भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं और शिव से मांगते हैं अपनी हर इच्छा पूर्ण करने वरदान क्योंकि शिव तो भोले है और वह अपने भक्तों की हर मन्नत पूरी करते हैं।