क्या विशेषताएं होगी आम बजट 2018 की

खबरें अभी तक ।केंद्र सरकार एक फरवरी को आम बजट पेश करने वाली है। देखने की बात यह होगी कि इस बार बजट में नया क्या होगा। मोदी सरकार का यह अंतिम पूर्ण बजट होगा जिसमें वह सभी वर्गों को साधने की कोशिश कर सकती है। चूंकि, सरकार का यह अंतिम बजट है इसलिए यह महत्वपूर्ण भी है और चुनौतीपूर्ण भी। वित्त मंत्री अरुण जेटली के सामने इस बार दोहरी चुनौती है। वित्त मंत्री अर्थव्यवस्था के अनुरूप और आर्थिक सुधारों को बढ़ाने वाला बजट करते हैं या राजनीतिक दबावों के तहत उसमें पॉपुलर योजनाओं को शामिल करते हैं, यह देखने वाली बात होगी। पिछले वर्षों में मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था की गति तेज करने और सिस्टम से भ्रष्टाचार एवं काला धन समाप्त करने के लिए आर्थिक सुधारों की पहल की है और कड़े कानूनी प्रावधानों एवं पारदर्शी व्यवस्था पर जोर दिया है।

 

आम बजट पर होगा राजनीतिक दबाव 

खुद प्रधानमंत्री मोदी मानते हैं कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कड़े आर्थिक फैसले लेने होंगे और उन्होंने ऐसा किया भी है। लेकिन अपने यहां आम बजट कभी राजनीतिक दबावों से मुक्त नहीं होता। हर बार उसमें जनता को राहत देने वाली और अपनी लोकप्रियता बढ़ाने वाली कुछ न कुछ लोकप्रिय योजनाओं को शामिल किया जाता रहा है। सरकारें ज्यादातर अपनी योजनाएं और आर्थिक फैसले चुनावों एवं वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए तैयार करती आई हैं। साल 2008 में आठ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। पूर्वोत्तर के तीन राज्यों त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय में फरवरी में और इसके बाद कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में वोट डाले जाएंगे। ऐसे में इस बार के बजट में लोकलुभावन योजनाओं और करों में छूट की घोषणाओं की पूरी-पूरी गुंजाइश बनती है।

 

पॉपुलिस्ट नहीं होगा आम बजट 2018! 
प्रधानमंत्री मोदी न्यूज चैनलों को दिए अपने इंटरव्यू में संकेत दे चुके हैं कि 2018 का आम बजट पॉपुलिस्ट नहीं होगा। पीएम की बातों से यही लगता है कि सरकार अर्थव्यवस्था के अपने आजमाए मानदंडों के आधार पर ही बजट पेश करने की सोच रही है लेकिन क्या ऐसा व्यवहार में संभव है। बजट पेश करने के बाद मोदी सरकार को पहले विधानसभा चुनावों और फिर आम चुनाव का सामना करना है। गुजरात जो पीएम मोदी का गृह प्रदेश है, यहां विधानसभा के नतीजे भाजपा के लिए बहुत अच्छे नहीं रहे। गुजरात में काफी मशक्त के बाद भाजपा को जीत मिली। नोटबंदी के चलते ग्रामीण अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती के चलते किसानों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। भाजपा शहरी क्षेत्रों के मुकाबले ग्रामीण इलाकों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई और इसे किसानों की नाराजगी से जोड़कर देखा गया।

 

किसानों को खुश कर सकती है सरकार
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान तीनों बड़े राज्य हैं और इन प्रदेशों की एक बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है। इन तीनों राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। आम चुनाव से पहले इन तीनों राज्यों में अपनी वापसी करने का राजनीतिक दबाव भाजपा पर जरूर होगा। भाजपा चाहेगी कि सरकारी बजट में किसानों एवं कृषि से जुड़ी ऐसी योजनाओं की घोषणा हो जिससे वह मजबूती के साथ विधानसभा चुनावों में जाए और किसानों के सामने अपनी योजनाओं का बखान कर सके। अपने वोट बैंक का ख्याल रखते हुए सरकार बजट में कृषि ऋण, कृषि उपकरणों और कृषि आधारित योजनाओं पर ज्यादा आवंटन कर सकती है। नोटबंदी और इसके बाद जीएसटी लागू होने से ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था की हालत और खराब हो गई है। किसानों को उनकी फसल की कीमत नहीं मिल रही है। शहरों में आर्थिक गतिविधियां सुस्‍त होने का असर गांवों पर भी पड़ा है और जो वर्कर शहर में काम करते और पैसा गांव भेजते थे उसमें कमी आई। ग्रामीण इलाकों में रहने वाले युवाओं के लिए शहरों और स्‍थानीय स्‍तर भी रोजगार के मौके कम हो गए।

 

राज्यसभा में सीटें बढ़ाने पर सरकार की नजर
दूसरा, सरकार के पास लोकसभा में बहुमत का आंकड़ा है लेकिन राज्यसभा में वह बहुमत के आंकड़े से दूर है। लोकसभा में पारित अपने अहम विधेयकों के लिए उसे राज्यसभा में विपक्ष का मुंह ताकना पड़ता है। सरकार की नजर राज्यसभा में अपनी संख्या बढ़ाने पर भी होगी। उच्च सदन में उसका आंकड़ा तभी सुधरेगा जब भाजपा विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज करे। विधानसभा चुनावों को देखते हुए सरकार बजट में राजनीतिक रूप से नुकसान पहुंचाने वाले कदमों से बचना चाहेगी। सरकार अर्थव्यवस्था पर पीएम की सोच और चुनावी लाभ को टटोलते हुए बजट में बीच का रास्ता निकाल सकती है।

 

मोदी सरकार के पास होगा आखिरी मौका
मोदी सरकार इकोनॉमी, नौकरी और किसानों की आय के मोर्चे पर बड़े सुधार के वादे के साथ सत्‍ता में आई थी लेकिन आंकड़ों के लिहाज से मोदी सरकार अपने इन वादों पर अब तक खरी नहीं उतरी है। ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था दबाव के दौर से गुजर रही है। इस स्थिति को बदलने के लिए मोदी सरकार के पास 1 फरवरी का बजट शायद आखिरी मौका है। अगर सरकार यहां पर कारगर कदम नहीं उठाती है तो आगे सरकार के पास इसके लिए पर्याप्‍त समय नहीं होगा।