आखिर क्या वजह है कासगंज में हिंसा फैलने की

खबरें अभी तक।सियासत सुलगने लगी है. कासगंज में बवाल की आंच अब धीमी पड़ रही है लेकिन डिप्टी सीएम ने तो यहां तक कह दिया है कि इसके पीछे बड़ी साजिश है. बड़ा सवाल ये है कि बवाल शुरू होने के 48 घंटे बाद भी दंगाइयों पर पूरी तरह काबू क्यों नहीं पाया जा सका? कासगंज में भड़की हिंसा के पीछे ये पांच बड़ी लापरवाही सामने आई है.

 

  1. कर्फ्यू क्यों जल्दी हटाया गया

 

26 जनवरी के दिन बवाल शुरू होने के तुरंत बाद प्रशासन ने कर्फ्यू लगाया, लेकिन कुछ घंटे के बाद ही कर्फ्यू हटाकर इलाके में धारा 144 लगा दी गई. सवाल उठता है कि जब तनाव कायम था तो ऐसे में कर्फ्यू हटाने में हड़बड़ी क्यों दिखाई गई. मौके पर 700 से 800 पुलिस वालों की मौजूदगी के बावजूद बलवाइयों को कहां से ताकत मिल रही है और वो आज सुबह तक आगजनी और तोड़फोड़ करने में कैसे कामयाब रहे. क्यों दंगाइयों को इतनी छूट दी गई कि वे आगजनी कर सकें.

 

  1. लखनऊ से कोई आला-अफसर नहीं पहुंचा

 

कासगंज में हिंसा होने के तीसरे दिन भी यानि रविवार सुबह तक आगजनी की छिटपुट घटनाएं होती रहीं. बवाल के अगले दिन ही प्रशासन सख्ती का दावा करता रहा. इसके बावजूद 48 घंटे तक पूरा इलाका जलता रहा. बवाली सड़क पर उधम मचाते रहे. प्रशासन की लापरवाही दिखती रही. ना तो आगजनी रुकी और ना ही तोड़फोड़. लखनऊ से कोई आला अफसर भी नहीं पहुंचा. यानी जिले और रेंज के अफसरों के हाथ में ही सब कुछ छोड़ दिया गया.

 

  1. देरी से एक्शन लिया गया

 

हिंसा पर प्रशासन ने बहुत देरी से एक्शन लिया. शुरुआत में ही अगर मामले की गंभीरता को समझ लिया जाता तो नौबत यहां तक न आती. कर्फ्यू जल्दी हटाने के बाद दंगाइयों को खुली छूट देने के साथ ही फौरन कोई धरपकड़ न करने से उनका दुस्साहस बढ़ गया, जिसकी परिणति तीसरे दिन भी हिंसा के रूप में हुई. हालांकि अब आरोपियों पर रासुका तक लगाने की बात की जा रही है.

 

  1. राजनीतिक बयानबाजी

 

हिंसा भड़कने के बाद से ही सियासी बयानबाजी शुरू हो गई. तीसरे दिन तो खुलकर अखिलेश यादव से लेकर मायावती तक मैदान में आ गईं. सपा अध्यक्ष और सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कासगंज की घटना के लिए सरकार के अधिकारियों को दोषी ठहराया. उन्होंने तो चंदन गुप्ता को 50 लाख का मुआवजा देने की मांग भी कर दी है. साथ ही चंदन के घर जाने की बात भी कही है. वहीं मायावती ने कहा कि मौजूदा हालात से साबित होता है कि भाजपा एण्ड कम्पनी का हर स्तर पर ‘घोर अपराधीकरण’ हो चुका है. कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश सरकार और स्थानीय प्रशासन की लापरवाही एवं कुप्रबंधन के कारण कासगंज में दो समुदायों के बीच झड़पें हुई.

 

  1. कोई बीजेपी का बड़ा नेता नहीं पहुंचा

 

हिंसा के 55 घंटे बाद भी सरकार का कोई मंत्री मौके पर नहीं पहुंचा. किसी ने मौके पर पहुंचकर अमन-चैन कायम करने के लिए प्रयास नहीं किया. आज पीस मीटिंग भी हुई, उसमें भी किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई. कोई बड़ा नेता आगे आता तो तनाव कुछ कम हो सकता था.