ऑनलाइन ऑर्डर किया माल पंसद ना आए तो वो कहां जाता है, जानिए

ख़बरें अभी तक। क्या आपको पता है जब आप ऑनलाइन कुछ भी ऑर्डर करते है तो यदि वो आपको ठीक ना लगे तो वह कहां चले जाते है। अगर आपको इस बारे में नहीं पता है तो आज हम आपको इस बारे में बताएंगे कि आपकी रिजक्ट की हुई चीज़ आखिरी कहां जाती है।

हक़ीक़त यह है कि ज़्यादातर माल कूड़े के ढेर में चला जाता है। ऑनलाइन दुकानों के स्टॉक से एक बार माल की सप्लाई हो जाने के बाद उनका यही हश्र होता है। हर साल केवल अमरीका में ही ग्राहक करीब 3.5 अरब उत्पाद लौटाते हैं. लौटाए हुए माल को उनकी मंजिल तक पहुंचाने की विशेषज्ञ कंपनी ऑप्टोरो के मुताबिक इनमें से सिर्फ़ 20 फीसदी उत्पाद ही असल में ख़राब होते हैं।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ आर्ट्स लंदन में सेंटर फ़ॉर सस्टेनेबल फ़ैशन की सारा नीधम का कहना है कि खुदरा विक्रेताओं से ग्राहकों तक माल की सप्लाई और उनकी वापसी आर्थिक और पर्यावरण दोनों नज़रिये से दोषपूर्ण है। सारा बताती हैं, “वापस आने वाले कई सामान इस्तेमाल में आने से पहले ही कूड़े के ढेर में चले जाते हैं। इन उत्पादों में महंगे संसाधनों का इस्तेमाल होता है जो अब दुर्लभ हो रहे हैं, मगर हम उनको यूं ही फेंक रहे हैं।” सामान की वापसी से कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है और यह कंपनियों के लिए भी बड़ा सिरदर्द है।

खुले डिब्बे और खुले फीते के साथ नये जूते की जिस जोड़ी को वापस भेजा जाता है, उनको अलग से संभालने की ज़रूरत पड़ती है। कई कंपनियों के पास वापसी के माल को बारीकी से संभालने की तकनीक नहीं है। उनके लिए फायदे का सौदा यही है कि डिस्काउंट देकर उनको सस्ते में बेच दिया जाए या फिर दूसरा विकल्प यह है कि उनको ट्रकों में भरकर कूड़े के ढेर तक पहुंचा दिया जाए।

इंटरनेशनल यूनियन फ़ॉर कन्जर्वेशन ऑफ़ नेचर की साल 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक औद्योगिक जल प्रदूषण का 17 से 20 फीसदी हिस्सा कपड़ों की रंगाई के कारण होता है। पर्यावरण के संकटों के बावजूद फ़ास्ट फ़ैशन का कारोबार तेज़ी से बढ़ रहा है।

ग्रीनपीस की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 से 2014 के बीच कपड़ों का उत्पादन दोगुना हो गया। एक औसत आदमी हर साल पहले से 60 फीसदी अधिक कपड़े खरीद रहा है। दुनिया की आबादी साल 2050 तक 9 अरब हो जाने का अनुमान है।

ऐसे में वापसी के माल को फिर से उपयोग लायक बनाना बहुत अहम है। ऑप्टोरो की सीनियर डायरेक्टर एन्न स्टारोडज का कहना है कि उपभोक्ता आदतें अब हानिकारक हो सकती हैं, लेकिन शुरू से आख़िर तक फ़ायदेमंद और पर्यावरण के अनुकूल फ़ैशन मॉडल बनाकर आगे बढ़ा जा सकता है।