अगर आपने कंलक फिल्म नहीं देखी है तो आपको ये रिव्यू जरुर पढ़ना चाहिए, शब्दों से फिल्म की सैर कीजिएगा….

खबरें अभी तक। कुछ रिश्ते कर्जों की तरह होते हैं, उन्हें निभाना नहीं चुकाना पड़ता है’। निर्माता करण जौहर और निर्देशक अभिषेक वर्मन की फिल्म कलंक का यह संवाद फिल्म के निचोड़ को बयान करता है। शिद्दत वाले प्यार में गिरफ्तार फिल्म का हर किरदार अपने रिश्ते का कर्ज चुकाता नजर आता है, जहां उसे प्यार तो मिलता है, मगर वह पूरा नहीं हो पाता।

कहानी 1940 के दशक में हुसैनाबाद में बेस्ड है, जहां रूप (आलिया भट्ट) की दुनिया उस वक्त अचानक बदल जाती है, जब वह अपनी बहनों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए अखबारनवीस देव चौधरी (आदित्य रॉय कपूर) से शादी करने को राजी हो जाती है।

कैंसरग्रस्त सत्या (सोनाक्षी सिन्हा) मरने से पहले अपनी आखिरी ख्वाहिश के तहत वह अपने पति देव को अपनी जगह पत्नी के रूप में एक साथी देकर जाना चाहती है, मगर सुहागरात को देव रूप से कहता है कि इस रिश्ते में उसे इज्जत तो मिलेगी, मगर प्यार नहीं, क्योंकि प्यार वह सिर्फ अपनी पहली पत्नी सत्या से करता है। रूप बहार बेगम (माधुरी दीक्षित) के कोठे पर गाना सीखने जाती है, जहां उसकी मुलाकात हीरामंडी नामक मोहल्ले में लोहार के रूप में काम करनेवाले जफर (वरुण धवन) से होती। दिलफेंक जफर रूप से नजदीकियां बढ़ाकर प्यार की दुनिया रच देता है, मगर वह रूप से यह बात साफ-साफ छिपा जाता है कि वह बहार बेगम और देव चौधरी के पिता बलवंत चौधरी की नाजायज औलाद है।

कहानी में देश के बंटवारे का एक पैरलल ट्रैक भी चल रहा है। प्री क्लाइमैक्स तक आते-आते देव जान जाता है कि उसका सौतेला नाजायज भाई जफर ही उसकी पत्नी रूप का प्रेमी है, मगर तब तक तरक्की पसंद देव के खिलाफ अब्दुल (कुणाल खेमू) दंगों का खूनी खेल शुरू कर चुका होता है।

निर्देशक अभिषेक वर्मन की कहानी बहुत ही उलझी हुई है। फिल्म का फर्स्ट हाफ बहुत ही धीमा है। निर्देशक ने बंटवारे से पहले के माहौल में किरदारों को स्थापित करने में बहुत ज्यादा वक्त लगाया है। स्क्रीनप्ले बहुत ही कमजोर है, जो कहानी को बोझिल कर देता है। फिल्म के सेट्स और कॉस्ट्यूम्स की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। फिल्म को देखना किसी विजुअल ट्रीट जैसा अनुभव देता है। कई जगहों पर यह संजय लीला भंसाली की फिल्मों की याद दिलाती है। फिल्म के कुछ संवाद दमदार हैं, मगर कहीं-कहीं पर डायलॉगबाजी का ओवरडोज नजर आता है। कई जगहों पर फिल्म की लंबाई अखरती है। परफॉर्मेंस के मामले में फिल्म बीस साबित हुई है।

फिल्म का दारोमदार वरुण और आलिया के कंधों पर है, जिसे उन्होंने अपने सशक्त अभिनय से बहुत ही चतुराई से अंजाम दिया है। देव के रूप में आदित्य रॉय कपूर अपनी खामोश भूमिका में प्रभाव छोड़ जाते हैं। सत्या के चरित्र में सोनाक्षी ने अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है। अधूरे प्यार की शिकार तवायफ के रूप में माधुरी दीक्षित नृत्य और अभिनय दोनों में याद रह जाता है। संजय दत्त और कियारा अडवानी की भूमिकाएं ज्यादा बड़ी नहीं। कुणाल खेमू ने नफरत फैलानेवाले अब्दुल के किरदार को बखूबी निभाया है। हितेन तेजवानी ने छोटी-सी भूमिका में अच्छा काम किया है। प्रीतम के संगीत में फिल्म के कई गाने पहले ही पसंद किए जा रहे हैं।

क्यों देखें: अभिनय, भव्य, खूबसूरत सेट्स और कॉस्ट्यूम के लिए फिल्म देखी जा सकती है।