कोटगढ़ के रहने वाले अकुंश ने इंडियन आइडल-10 में दूसरे नंबर पर बनाई जगह

ख़बरें अभी तक। हिमाचल प्रदेश के शिमला के कोटगढ़ के रहने वाले अकुंश ने अपनी आवाज का जादू इंडियन आइडल-10 के मंच बिखेरा. अकुंश भारद्वाज ने सोनी टीवी के शो इंडियन आइडल-10 में दूसरे नंबर पर जगह बनाई. हालांकि, वह खिताब जीतने से महज एक कदम दूर रह गया, लेकिन उसने अपनी आवाज से हर किसी को अपना दीवाना बनाया. बता दें कि अंकुश आंखों की बीमारी केरोटोकोनस आई डिसऑडर से भी जूझ रहा है, लेकिन फिर भी उसने हौंसला नहीं छोड़ा और आज वह इस मुकाम पर पहुंचा.कोटगढ़ के लोस्टा गांव का रहने वाले अंकुश बचपन से ही गाना गाने का शौक है, लेकिन किसी बड़े मंच पर अपनी आवाज का जादू दिखाने का मौका नहीं मिला और जब मिला तो उनसे सबको अपनी आवाज़ का दीवाना बना दिया. पिता सुरेश भारद्वाज ने हमेशा उसका साथ दिया.एक गुरु की तरह उसे सब कुछ सिखाया, लेकिन मां कमलेश को बेटे का गाना गाना गंवारा नहीं था. अंकुश के करियर की चिंता में मां ने हमेशा अंकुश को पढ़ाई की ओर ध्यान देने को कहा. मां सोचती थी कि गाना गाकर अंकुश कभी भी अपना भविष्य नहीं संवार पाएगा. अंकुश ने अपनी मां के लिए एमबीए फाइनेंस की पढ़ाई भी की, लेकिन गाने का शौक कभी नहीं छोडा.इसलिए अंकुश ने अपनी मां को एक दिन कमरे में बंद कर बाहर ताला लगाया और इंडियन आयडल की ऑडिशन के लिए मुम्बई जा पहुंचा. इस मुकाम पर अपने बेटे को देख का अंकुश की मां को आज अपने बेटे के फैसले पर गर्व होता है. एक छोटे से गांव से निकल कर जहां सुविधाओं को इतना अभाव है, संगीत के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है, वहां से बाहर निकल उसने खुद को साबित किया है. जब अंकुश पढ़ाई कर रहा था तो करीब चार साल पहले उसे एक दिन आंखों से कम दिखाई देने लगा.डॉक्टरी जांच में पता चला कि उसे केरोटोकोनस नाम की बीमारी है, जिसमें आंखों की रोशनी धीरे धीरे कम हो जाती है. अंकुश के माता पिता को अंकुश की आंखों की चिंता होने लगी, ऐसे में अंकुश के इंडियन आइडल में जाने के फैसले को अंकुश की मां को पसंद न आया. मां को हमेशा यही चिंता था कि अगर अंकुश वहां से बाहर मुम्बई चला गया तो वह अपनी आंखों का इलाज नहीं कर पाएगा. लेकिन अंकुश की जिद के आगे किसी की न चली. इसलिए मां को कमरे में बंद कर वो अपने सपने को पूरा करने निकल पड़ा. आज जब भी अंकुश टीवी पर गाता है तो मां को अपने बेटे के फैसले पर खुशी होती है.