पतंजलि फेयरनेस क्रीम का सबसे बड़ा झोल

खबरें अभी तक। बाबा रामदेव ‘स्वदेशी’ का कमाते हैं, खाते हैं. उनके हर प्रोडक्ट के इश्तेहार कहता है कि किस तरह विदेशी कंपनियों से बचना चाहिए.

लेकिन, एक बात समझ में नहीं आई. गोरेपन का कॉन्सेप्ट तो हमारे यहां विदेशी लेकर आए, नहीं? हमने तो बचपन से निबंध की किताब में पढ़ा था, ‘भारत एक कृषि-प्रधान देश है. हमारा रंग गेहुंआ होता है.’ गोरा ही सुंदर होता है, ये तो बड़ी ही विदेशी बात है. फिर भी स्वदेशी खरीदने पर जोर देने वाले बाबा रामदेव गोरेपन की क्रीम बेच रहे हैं.

सिर्फ बेच ही नहीं रहे हैं. ये भी बता रहे हैं कि काला या दबा हुआ रंग होना एक बीमारी है. जिसे बाबा की क्रीम सही कर सकती है.

जहां एक ओर क्रीम आपके नेचुरल रंग को और सफ़ेद करने का दावा करती है वहीं ये भी कहती है कि आपको 100 फीसद नेचुरल ब्यूटी देगी. ‘नेचुरल’ ब्यूटी का मतलब क्रीम लगाकर गोरा होना होता है क्या?

बाबा रामदेव के प्रोडक्ट केवल इश्तेहारों नहीं, अपनी क्वालिटी के लिए भी विवादों में रह चुके हैं. याद है पिछले साल आमला जूस और शिवलिंगी बीज को हरिद्वार आयुर्वेद और यूनानी ऑफिस ने ‘सब-स्टैण्डर्ड’ यानी यूज न करने लायक पाया था.

जहां तक काले का इलाज कर उसको सफ़ेद करने की बात है, तब तो देश के कुछ हिस्सों को छोड़कर हर जगह रहने वाले लोग बीमार ही हैं. और दुनिया के सारे गोरे, वो भी जो अस्पतालों में मरने वाले हैं, स्वस्थ हैं.