धर्म: जानिए पुर्णिमा का व्रत रखने के पीछे की कहानी

ख़बरें अभी तक। इसके पिछे एक कहानी है जिसमें कहा गया है कि एक साहुकार के दो पुत्रियां थी, साहुकार की दोनों पुत्रियां पुर्णिमा का व्रत रखती थी। लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधुरा व्रत करती थी। जिसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की सन्तान पैदा होते ही मर जाती थी। तभी ही उसने पंडितो से इसका कारण पूछा तो उन्होने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी जिसके कारण तुम्हारी सन्तान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पुरा विधिपुर्वक व्रत करने से तुम्हारी सन्तान जीवित रह सकती है।

इस बात को सुनकर छोटी बेटी ने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया, जिसके बाद उसका बेटा हुआ लेकिन उसने भी शीघ्र ही दम तोड़ दिया और उसने अपने बच्चे को पीढ़े पर लिटाकर ऊपर से कपड़ा ढक दिया। फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वहीं पीढ़ा दे दिया। बड़ी बहन जब पीढ़े पर बैठने लगी तो उसका घाघरा बच्चे का छू गया और बच्चा घाघरा छुते ही रोने लगा। बडी बहन बोली, तु मुझे कंलक लगाना चाहती थी, मेरे बैठने से यह मर जाता। तब छोटी बहन बोली, यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। जिसके बाद उसने नगर में पुर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया। तभी से इस दिन लोग विधिपूर्वक स्नान करके उपवास रखते है।