माँ लक्ष्मी का यह व्रत करने से आप होंगे धनवान, जानिए कैसे करें पूजा

ख़बरें अभी तक। हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं, ज्‍योतिषों की मानें तो पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिन्दू धर्म में इस दिन कोजागर व्रत माना गया है और इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। बता दें कि इस दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। हिन्दुओं में मान्यता है कि इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चांदनी में रखने का विधान है।

बता दें कि इस रात चन्द्रमा की किरणों से अमृत तत्व बरसता है और चन्द्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ पृथ्वी पर शीतलता, पोषक शक्ति एंव शांति रूपी अमृत वर्षा करते हैं। चंद्रमा की उज्ज्वल किरणें जब फसलों, पेड़-पौधों, पेय एंव खाद्य पदार्थो में पड़ती हैं तो इनमें अमृत्व का प्रभाव आ जाता है और ये जीवनदायिनी होकर जीव-जगत को आरोग्य प्रदान करती है।

मां लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर सवार होकर करती है भ्रमण

बता दें कि नारद पुराण के अनुसार शरद पूर्णिमा की धवल चांदनी में मां लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर सवार होकर अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए निशीथ काल में पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और माता यह भी देखती है- कि कौन जाग रहा है, यानि अपने कर्त्तव्यों को लेकर कौन जागृत है जो इस रात में जागकर मां लक्ष्मी की उपासना करते हैं मां लक्ष्मी की उन पर असीम कृपा होती है। प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह व्रत लक्ष्मी जी को संतुष्ट करने वाला है।

इस दिन चन्द्रमा की भी पूजा अर्चना करनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था, इसीलिए देश के कई हिस्सों में शरद पूर्णिमा को लक्ष्मीजी का पूजन किया जाता है, कुआंरी कन्याएं इस दिन सुबह सूर्य और चन्द्र देव की पूजा अर्चना करें तो उन्हें मनचाहे वर की प्राप्ति होती है। भगवान श्री कृष्ण और राधा की अद्भुत एंव दिव्य रासलीलाओं का आरम्भ भी शरद पूर्णिमा के दिन हुआ। पूर्णिमा की श्वेत उज्जवल चांदनी में भगवान श्री कृष्ण ने अपनी नौ लाख गोपिकाओं के साथ स्वंय के ही नौ लाख अलग-अलग रुपों में आकर ब्रज में महारास रचाया था।

कैसे करें पूजा-अर्चना…

शरद पूर्णिमा की सुबह स्नान करें उस के बाद अपने आराध्य देव की पूजा करें। अगर स्वयं न कर पाएं तो किसी योग्य ब्राह्मण से पूजा करवाएं। आधी रात के समय गाय के दूध से बनी खीर का भोग भगवान को लगाएं। बता दें कि  खीर से भरे बर्तन को रात में खुली चांदनी में रखना चाहिए। इसमें रात के समय चंद्रमा की किरणों के द्वारा अमृत गिरता है, ऐसी मान्यता है कि पूर्ण चंद्रमा के मध्याकाश में स्थित होने पर उसका पूजन कर अर्घ्य प्रदान करना चाहिए। इस दिन कांसे के बर्तन में घी भरकर ब्राह्मण को दान देने से मनुष्य ओजस्वी होता है। ऐसा धर्म शास्त्रों में लिखा है।