बॉलीवुड के सदाबहार हीरो देवानंद के जन्मदिन पर कुछ खास..

खबरें अभी तक । अपने अंदाज से  को बॉलीवुड में नई पहचान देने वाले देवानंद की आज 89वीं जयंती है। 26 सितंबर 1923 को जन्में देवानंद भले ही आज हमारे बीच ना हो लेकिन देवानंद के बॉलीवुड में योगदान को भुला पाना मुश्किल है। 88 साल की उम्र तक यानी अपने अंतिम समय में भी देवानंद फिल्मी दुनिया में सक्रिय रहें। उनकी ये जिद भी थी कि वे अपने अंतिम समय तक फिल्मों के लिए काम करना पसंद करेंगे, अपनी इस जिद को उन्होंने आखिरी समय तक पूरा भी किया।

इन्होंनें अपनी जिदंगी पॉजिटीव तरीके से जी 

अपनी शर्तों और अपने ही ढंग से जिदंगी को जीने वाले देवानंद ने जिंदगी को हमेशा ही सकारात्मक रूप से देखा। वे बहुत आशावादी थे, इसी कारण वे उदासीनता भरे किरदारों को निभाने से हमेशा बचते रहे। देवानंद ने अभिनेता के साथ-साथ लेखक, निर्माता और निर्देशक सभी भूमिकाओं को बखूबी निभाया था।
देवानंद युवाओं के बीच अपनी छवि बनाने वाले मस्तमौला इंसान थे, इन्हें लोगों से मिलना-जुलना बहुत अच्छा लगता था। उनके इसी व्यवहार के कारण वे जल्दी ही लोगों को अपना फ्रेंड बना लेते थे। वे शुरू से ही नई जमाने की सोच के साथ चलते थे। इसी कारण उनके फैंस हर ऐज के थे। देवानंद के लिए हर दिन नया होता था।
देवआनंद जिंदगी को एक जश्न की तरह जीते थे। यही कारण था कि उन्होंने अपनी जिंदगी के हर लम्हे को भरपूर जिया। अपने अंतिम दिनों में भी देवानंद ऐसे जीते थे जैसे उनका कॅरियर अभी शुरू हुआ हो।

 कुछ कर गुजर जाने के लिए जिद्दी भी थे

देवआनंद किसी भी किरदार को बहुत ही जल्दी ही प्रभावी बना देते थे यही उनके अभिनय की खासियत भी थी। देवआनंद की कामयाबी के पीछे एक बहुत बड़ा हाथ था और वो था गुरूदत्त का। इन्हीं के कारण देवानंद के अभिनय की प्रतिभा को पहचान उन्हें सम्मान दिया गया। राजकपूर ने भी देवानंद के अभिनय को निखारने में बहुत मदद की। अशोक कुमार के कारण ही इन्हें फिल्म ‘जिद्दी’ में काम करने का मौका मिला। इसी फिल्म से इनकी कामयाबी की बुलंदियां शुरू हुई और इसके बाद तो जैसे देवानंद ने कभी पीछे मुड़कर ही नहीं देखा।

 स्वाभिमानी थे देव आनंद

देवानंद ने कभी भी काम से भागना नहीं सीखा था, वे गम में ना तो बहुत दुखी होते थे और खुशी में ना ही बेहद उत्साहित। अपने इसी व्यवहार के कारण वे अपने अंतिम दिनों में भी काम को लेकर जुनूनी बने रहे।

 रोमांटक हीरे थे देव आनंद

देवानंद अपने आपको इंटरनल रोमांटिक व्यक्ति कहलाना ज्यादा पसंद करते थे। इन्होंने रोमानियत की नई परिभाषा गढ़ी। देवानंद की नजर में मोहब्बत पाने का अहसास नहीं बल्कि मोहब्बत करने का अहसास है। यही कारण था उनकी आत्मकथा ‘रोमांसिंग विद लाइफ’ का अंतरराष्ट्रीय संस्करण भी जारी हुआ है।

 इनका प्यार हुआ नाकाम

देवानंद की सुरैया से मोहब्बत किसी रोमांटिक फिल्म से कम नहीं थी। दोनों के प्यार के बीच हिंदू-मुसलिम की दीवार आ खड़ी हुई। इस दीवार के कारण इनकी मोहब्ब्त को कामयाबी नहीं मिल पाई। गौरतलब है कि, उनकी आत्मकथा ‘रोमांसिंग विद लाइफ’ में भी उनके और सुरैया के रिश्ते के बारे में कई खुलासे हुए हैं। इन दोनों ने लगभग सात फिल्मों ‘अफसर’, ‘नीली’, ‘विद्या’, ‘जीत’,‘शेर’, ‘सनम’ और ‘दो सितारे’ में साथ काम किया। हालांकि ब्रेकअप के बाद दोनों ने साथ में एक भी फिल्म नहीं की।

 इनकी फिल्में और अवार्ड

फिल्म ‘हम एक हैं’ से बॉलीवुड में कदम रखने वाले देवानंद हमेशा से ही सदाबहार अभिनेताओं में गिने गए। बतौर अभिनेता देवानंद की सबसे अधिक चर्चित फिल्म थी ‘गाइड’, ‘जिद्दी’, ‘काला पानी’, ‘हरे कृष्णा हरे रामा’, ‘मुनीम जी’।
1946 से 2011 तक देवानंद ने सिनेमा की दुनिया में सक्रिय रहते हुए लगभग 19 फिल्मों का निर्देशन किया और अपनी 13 फिल्मों की कहानी खुद लिखी।
देवानंद 40 के दशक में एक स्टाइलिश हीरो के रूप में उभरें। देवानंद राजनीतिक और सामाजिक रूप से भी सक्रिय रहे।
देवानंद को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड के साथ-साथ पद्मभूषण और दादा साहेब फाल्के जैसे पुरस्कारों से भी नवाजा गया। छह दशकों में देवानंद ने बॉलीवुड में अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी दी।