हरियाणा विधानसभा में मानसून सत्र के अंतिम दिन सीएम मनोहर लाल ने अहम मुद्दों पर रखा अपना वक्तव्य

खबरें अभी तक। हरियाणा विधानसभा के मानसून सत्र के अंतिम दिन हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि कर्मचारी सरकार और प्रशासन की रीड की हड्डी होती है। जितना 4 साल की अवधि में वर्तमान सरकार ने कर्मचारियों के हित में किया है वह किसी भी सरकार ने नहीं किया है।

सदन को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा की कच्चे कर्मचारियों को नियमित करने के विरूद्ध 31 मई, 2018 को दिए गए हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ हरियाणा सरकार, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुडा, विपक्ष के नेता अभय सिंह चौटाला, हरियाणा के पूर्व महाअधिवक्ता हवा सिंह हुडा व कर्मचारी यूनियन के नेताओं के सहमति से महाअधिवक्ता, हरियाणा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में 6 सिंतबर 2018 को विशेष याचिका डाली गई।

मुख्यमंत्री ने कहा कि जहां तक हरियाणा परिवहन के कर्मचारियों का हड़ताल पर जाने का मामला है। उसे किसी भी हालत में सहन नहीं किया जाएगा। क्योंकि हरियाणा परिवहन के कर्मचारी नेताओं दलबीर किरमारा, सरबत सिंह पुनिया व इंद्र सिंह बधाना व अन्य ने हाईकोर्ट में एफिडेविट दिया है कि उन्हें किलोमीटर आधार पर 720 प्राइवेट बसें लेने पर कोई आपत्ति नहीं है। इसके बावजूद भी कर्मचारी हड़ताल पर गए वह गलत है और सरकार का एस्मा लागू करने पर मजबूर होना पड़ा। उन्होंने कहा कि अब कर्मचारी नेता किलोमीटर आधारित बसों की मरम्मत हरियाणा परिवहन की कर्मशालाओं के माध्यम से करवाना चाहते हैं। जो कहीं न कहीं दाल में काला है वाली बात दर्शाती है। मुख्यमंत्री ने कहा कि कार्यशाला में सूचिता बनी रहे, इसके लिए परिवहन मंत्री को विशेष निर्देश दिये। उन्होंने कहा कि चाहे सरकार के माध्यम से या परिवहन के माध्यम से हमें प्रदेश की 2.70 करोड़ जनता को सेवा देना है और यही हमारा उद्देश्य है।

महाअधिवक्ता बलदेव राज महाजन ने भी सदन में अपना वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय में विशेष याचिका डालने से पहले उन्होंने विपक्षी पार्टियों के नेता व उनके विधि परामर्शी प्रतिनिधियों, पूर्व महाअधिवक्ता हवा सिंह हुडा के निवास पर दिनभर बैठक की, जिसमें कर्मचारी नेता भी शामिल थे। उसके बाद याचिका डालने की सहमति बनी। उन्होंने सदन को बताया कि या तो विधानसभा में अध्यादेश लाकर कर्मचारियों को नियमित किया जा सकता था या फिर सर्वोच्च न्यायालय में उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध याचिका डाली जा सकती है। अगर हरियाणा विधानसभा में पारित अधिनियम को न्यायालय में चुनौती दी जाती और उस पर स्टे मिल जाता तो हम सर्वोच्च न्यायालय में भी याचिका नहीं डाल सकते थे और अधिनियम खत्म हो जाता। सभी पार्टियों के विधि विशेषज्ञों की यही राय थी कि पहले सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली जाए।