यहां विराजमान हुए थे शिव, लंका ले जाने का रावण का था प्रण

ख़बरें अभी तक। लखीमपुर के गोला गोकरणनाथ में छोटी काशी के नाम से विख्यात इस शिव नगरी में रेलवे स्टेशन से मात्र 200 मीटर की दूरी पर पौराणिक शिवलिंग स्थापित है. लखीमपुर यूपी के लखीमपुर खीरी में शिव की ऐसी भी नगरी है, जिसकी महिमा अपने में अद्भुत और इसका इतिहास सबसे जुदा है. यहां भगवान शिव धरती से कुछ नीचे विराजमान है.

क्या है गोला गोकरणनाथ की हकीकत?

लखीमपुर के गोला गोकरणनाथ में छोटी काशी के नाम से विख्यात इस शिव नगरी में रेलवे स्टेशन से मात्र200 मीटर की दूरी पर पौराणिक शिवलिंग स्थापित है. इसे सतयुग में लंका के राजा रावण द्वारा लाया गया था. सरायन नदी और उल्ल नदी के बीच गाय के कान के समान इस क्षेत्र में इस अलौकिक शिव मंदिर स्वयं स्थापित हो जाने के बाद इस क्षेत्र को गोकर्ण क्षेत्र के नाम से पुराणों में भी इसका विवरण मिलता है.

प्राचीन कथाओं के अनुसार

लंका के राजा रावण द्वारा किये गए 12 सालों की घोर तपस्या के बाद भगवान शिव ने तपस्या से प्रसन्न होकर जब रावण से वरदान मांगने को कहा. रावण ने भगवान शिव से कहा कि वह स्वयं भगवान शिव को लंका ले जाना चाहता है. अत: उसके साथ लंका चले और वहीं रहे. रावण की ये बात सुनकर देव लोक में भूचाल आ गया. इंद्र सहित सभी देवता हतप्रभ होकर ब्रह्माजी के पास गये और निवेदन किया कि यदि औघड दानी भगवान शिव रावण के साथ लंका चले गए तो संसार और सृष्टि का कार्य कैसे होगा? कौन करेगा? तब ब्रह्माजी ने भगवान शिव से सोच समझकर वरदान देने को प्रेरित किया.

इस पर भगवान शिव ने कहा कि रावण यदि तुम मुझे लंका ले जाना चाहते हो तो ले चलो, पर याद रखना कि जहां भी भूमि स्पर्श हो जाएगा, मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा. इससे रावण सहमत हो गया. इसके बाद भगवान शिव ने स्वयं को एक शिवलिंग मे परिवर्तित कर लिया. उसी शिवलिंग को लेकर रावण जब इस क्षेत्र से जा रहा था. तभी यह क्षेत्र भगवान को अच्छा लगा और उन्होंने रावण में तीव्र लघुशंका की इच्छा जगा दी. काफी परेशान होकर रावण ने यहीं पर गाय चरा रहे एक ग्वाले को बुलाया और शिवलिंग उसके सिर पर पकड़ाकर लघुशंका करने लगा, जिस स्थान पर रावण ने लघुशंका की थी, वहां झील बन गयी. इसे सतौती के नाम से जाना जाता है.

जब रावण लघुशंका कर रहा था, तब भगवान शिव ने अपना वजन बढ़ाना प्रारम्भ कर दिया. थोड़ी देर बाद ग्वाले ने रावण को आवाज देकर बुलाया कि अब वह भार बढ़ने के कारण शिवलिंग नहीं संभाल सकता है और इसलिए वे जल्दी आकर शिवलिंग ले ले, लेकिन रावण लघुशंका में ही लीन था. थककर ग्वाले ने शिवलिंग भूमि पर रख दिया. जब रावण ने यह देखा तो क्रोध मे आकर ग्वाले को मारने के लिए पीछे से दौड़ा, तब ग्वाले ने एक कुएं में कूदकर जान दे दी. परेशान रावण ने वापस आकर शिवलिंग को उठाने का काफी प्रयास किया, लेकिन असफल रहा.

हारकर क्रोधित रावण ने अपने अंगूठे से शिवलिंग को जोर से दबाया, जिसका निशान शिवलिंग में आज तक विद्यमान है. फिर रावण अपनी लंका नगरी चला गया. रावण के जाने के वाद भगवान शिव ने ग्वाले की आत्मा को बुलाकर कहा कि आज के बाद संसार तुम्हें भूतनाथ के नाम से जानेगा. मेरे दर्शनों के उपरांत तुम्हारे दर्शन करने वाले भक्तों को विशेष पुण्यलाभ होगा. इसके बाद से वह कुआं भूतनाथ के नाम से मशहूर हुआ. इसके बाद हर साल श्रावण मास और चैत्र मास को भगवान शिव दर्शनों को आने वाले लाखों भक्त शिवलिंग के दर्शनों के बाद बाबा भूतनाथ के भी दर्शन अवश्य करते है.