ये स्टेडियम है अनदेखी का शिकार, कहां दम तोड़ रही है सरकार की खेल नीति

खबरें अभी तक। यदी इन्सान में कुछ करने या पाने का जनून हो तो परिस्थितीया मंजिल हासिल करने में बाधा नही बन सकती, जुनून ओर बुंलद हौसले के सामने परिस्थितिया स्वत: ही घुटने टेक देती है। दंसान की आर्थक हालात और शारारिक स्थिति कुछ भी हो उसके समक्ष आई सभी चुनौतिया जुनून के सामने टीक नही पाती। इन सब को हराते हुए इंसान लगातर आगे बढ़ता जाता है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है गांव रत्नथल के दिव्याँग अमित चौहान ने पिछले माह बहादूरगढ़ में आयोजित धमिका काई कराटे फाउनडेशन द्वारा आयोजित आँल इंडिया कराटे चैंपियनसिप में ब्लैक बैल्ट हासिल कर इसे साबित कर दिखाया।

बड़ी उपलब्धि है ब्लैक बेल्ट: कराटे में सबसे बडी उपलब्धि ब्लैक बेल्ट कही जाती है। कराटे में पदक के साथ बेल्ट का बडा महत्व होता है तथा ब्लैक बेल्ट हासिल करना प्रतेक खिलाडी का सपना होता है, दिव्यांग होते हुए अमित ने दो कड़ी प्रतियोगिता से गुजरते हुए यह उपलब्धि हासिल की है। इसी गांव की बच्चियों ने 2017 में जौधपुर में आयोजित नैशनल कराटे चैंपियनसिप में सिल्वर मैडल तथा हिसार में आयोजित आँल इंडिया गल्र्स कराटे चैंपियानसिप में 3 लडकियो ने हिस्सा लिया जिसमें रीना ने सिल्वर, खुशबु ने कांस्य व स्वर्ण पदक हासिल किए थे। लेकिन गांव में खेल सुविधा के नाम पर सरकार ने 2011-12 में 30 लाख की लागत से खेल स्टेडियम की चार दिवारी तो बना दी परंतु इसमें चार दिवारी केे अलावा कुछ भी नही है।

गांव के युवा खिलाडियों ने बताया कि हमारे गांव में शुरू से ही युवाओ में खेल के प्रति रूझान रहा है जिस कारण हमारे गांव के अधिकतर बच्चे सेना में भर्ति होते है। गांव के बच्चो ने बताया कि हम भी इन खिलाडियों से प्ररेणा लेकर खेल के क्षेत्र में गांव व प्रदेश का नाम रोशन करना चाहते है, लेकिन खेल स्टेडियम में 30 लाख की लागत लगने के बाद भी बच्चो के खेलने लायक जगह नही है। जमीन समतल नही है, न पानी का प्रंबध है, खिलाडियो की जगह यंहा पशु दौड़ लगाते देखे जा सकते है। आखिर सरकार की कार्यशैली देखकर गांव के खिलाडियो ने अपने पैसो से मैदान में को समतल कराया है ताकि वो दौड़ लगा सके। स्टेडियम में खेल सुविधा ना होने के वजह से सडक़ो पर दौड़ लगाकर अपने जीवन को खतरे में डाल रहे है।