सोनीपत जुवेनाइल न्यायालय ने गांधीगिरी दिखाते हुए बाल कैदी को सामुदायिक कार्य करने की सजा दी

ख़बरें अभी तक। बच्चे कच्ची मिटटी की तरह होते है. यदि जाने अनजाने उनसे कोई अपराध हो जाए और सुधरने का एक मौका दिया जाए तो उम्मीद की जा सकती है कि वो सुधर सके. सोनीपत जुवेनाइल न्यायालय ने गांधीगिरी दिखाते हुए एक बाल कैदी को जेल में ना भेज कर सामुदायिक कार्य करने की सजा दी है. जुवेनाइल न्यायालय ने न्यायधीश डॉ. सुखदा प्रीतम और जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के मेंबर सुनीता त्यागी, ओमप्रकाश दहिया ने सामूहिक फैसला लिया है. उनका मानना है कि सुधार गृह में किसी भी कैदी की आपराधिक बनने की मौके बढ़ जाते है. समुदायक सेवाओं में कैदी का मानसिक बढ़ोतरी होने के साथ साथ सामाजिक कार्य करने की लगन बढ़ती है.

जुवेनाइल जस्टिक बोर्ड ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए एक बाल कैदी को तीन महीने श्रम दान करने का फैसला सुनाया है. सरकारी वकील नीना कुंडू ने बताया कि एक नाबालिक किशोर का मामला आया था जिसका न्यायालय में अपराध साबित हो गया. परन्तु उसके सुधरने की उम्मीद थी जिसके चलते उसे जेल में ना भेजकर सामुदायक कार्य करने के लिए सोनीपत के एक थाने में भेजा गया है. जंहा पर उसे थाने में फलदार पेड़ पौधे लगाने होंगे और थाने में आने वाले लोगों को पानी पिलाना होगा. जिसमें सुबह 9 बजे से 5 बजे तक उसे थाने में ही रहना होगा. उन्होंने बताया कि सोनीपत में पहली बार ऐसा हुआ है कि न्यायालय ने ऐसा फैसला दिया है. उन्होंने बताया कि बच्चे कच्ची मिटटी की तरह होते है उसे हम जिस तरह ढालना चाहे उसे ढाल सकते है. उन्होंने बताया कि यदि बच्चो को जेल या सुधार गृह में भेजते है तो वंहा पर उनके अपराधी बनने की सम्भावना और अधिक बढ़ जाती है. समुदायिक सेवा करने से वो लोगो के बीच रहेंगे उनकी मानसिक प्रवृति सुधरेगी. इसी कारण उनके सुधरने की उम्मीद ज्यादा होती है. उन्होंने बताया कि यदि इसके सकारात्मक परिणाम आते है तो आगे भी ऐसे फैसले लिए जाते रहेंगे.

थाना प्रभारी फूल कुमार ने बताया कि जुवेनाइल न्यायालय द्वारा एक बाल कैदी को सामुदायिक कार्य करने के लिए थाने में भेजा गया है. ये एक बहुत अच्छा फैसला है. इससे कैदी के सुधरने के अवसर अधिक होते है. ये बाल कैदी सुबह 9 बजे थाने में आता है और 5 बजे तक यंहा पेड़ पौधों में पानी देता है आने वाले लोगों को पानी पिलाता है.