शाहतलाई का श्री बाबा बालक नाथ जी का मंदिर विदेशों में भी है बहुत प्रसिद्ध

ख़बरें अभी तक। हिमाचल प्रदेश में एक ऐसा भी पुलिस थाना है जिसका संबंध सिद्ध पीठ बाबा बालक नाथ से है. हजारों साल पहले बाबा बालक नाथ जी को गऊओं साथ थाने में रात गुजारनी पड़ी थी. यही नहीं मान्यता है कि अगर रोज सुबह ठाणे में पूजा ना की जाए तो कुछ भी अनर्थ होता है, पूजा स्थल वहां है जहां श्री बाबा बालक नाथ जी और उनकी गऊओं को एक रात के लिए बंदी बनाकर रखा गया था.

उत्तरी भारत का प्रसिद्ध शक्तिपीठ श्री बाबा बालक नाथ जी की देश में ही नहीं विदेशों में भी प्रसिद्धि है. जब बाबा बालक नाथ जी तप करने के लिये शाहतलाई आये थे. साधु समाज में प्रचलित कथा के अनुसार बाबा जी ने माता रत्नों के घर में अलख जलाया, तो माता रत्नों ने बाबा जी को भिक्षा दी. लेकिन बाबा जी ने भिक्षा लेने से इंकार कर दिया और कहा कि मुझे नौकरी पर रख लो. माता ने कहा कि मुझे नौकर की जरूत नहीं है, तो बाबा जी ने कहा कि चाकरी अथार्थ रोटी पर ही रख लो. यह सुनकर माता रत्नों प्रसन्न हुई और बारह वर्ष तक माता रत्नों ने बाबा जी को रोटी पर रख लिया, बाबा जी ने बदले में माता की गऊओं को चरायाइसी तरह बारह वर्ष का समय एक घड़ी में कट गया. जब बाबा जी ने शाहतलाई से चले जाना था तो उन्होंने खेल रचा, यहां के जितने भी किसान थे उनकी फसलें ऐसी दिखाई दे रही थी कि जैसे गउओं ने चर ली है. तब किसानों ने माता रत्नों को बाबा जी की शिकायत कर दी. माता रत्नों ने कुछ सोचा समझा नहीं और बाबा जी को डांट लगाई. कहा कि आपने मुफ़्त की मेरी रोटियां खाई और लस्सी पी.

तब बाबा जी ने कहा कि मेरी बारह बर्ष की तपस्या पूरी हुई. माता आपकी बारह वर्ष की रोटियां उस बटबृक्ष में हैं और लस्सी उस कुंड में है. इसके बाद किसानों ने बाबा जी और गऊओं को बड़सर थाना में रात के लिए बन्दी बनवा दिया. जब बाबा ने अपनी चमत्कारी शक्ति दिखाई तो किसान, कोतबाल को लेकर शाहतलाई पहुंचे तो वहां पर  फसलें वैसी ही लहरा रही थी जैसे किसी ने नहीं चरी हो.

आज भी इस बड़सर थाना में गऊओं का फाटक स्थान है. जहां पर बाबा जी और गऊओं को बंदी बनाया गया था. अब बड़सर पुलिस प्रशासन ने यहां गऊओं के फाटक मंदिर का निर्माण करवाया है. जहां पर पुलिस प्रशासन और स्थानीय लोग पूजा अर्चना करते है. पंजाब और दूसरे राज्यों से आये श्रद्धालु पहले इस मंदिर में शीश नवाते है, फिर आगे बढ़ते है, पुलिस प्रशासन द्वारा हर साल भंडारे का आयोजन किया जाता है.

अनु कुमारी ने बताया कि वे हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले से आये थे. हमने गऊओं दा फाटक मंदिर में शीश नवाया है, मान्यता है कि यहां पहले शीश नवाने के बाद ही बाबा जी की अगली यात्रा की जाती है. स्वर्णजीत सिंह निवासी बड़सर का कहना है कि बजुर्गों से हमें पता चला है कि यहां बाबा जी और उनकी गऊओं को बंदी बनाया गया था. जिस कारण यहां गऊओं दा फाटक मन्दिर बनाया गया है.