हिमाचल प्रदेश के इस गांव में आज भी राक्षसों की बोली बोलते है ग्रामीण

ख़बरें अभी तक। आजाद भारत में आज भी एक गांव ऐसा है, जहां भारतीय संसद के कानून लागू नहीं हो पाए है, सदियों से गांव की व्यवस्था देव परंपरा और गांव की अपनी लोकतांत्रिक प्रणाली से चलती आ रही है. हम बात कर रहे है ज़िला कुल्लू की मणिकर्ण घाटी में बसे मलाणा गांव की, आज भी मलाणा गांव में चुनी जाने वाली 14 सदस्यीय संसद गांव के कायदा कानून को लागू करती है. इसी व्यवस्था के तहत यहां विवादों का निपटारा संसद करती है.

मामला गंभीर या संगीन हो तो फिर फैसला सर्वोच्च न्यायालय की तरह देव अदालत में होता है, गौर रहे कि कुल्लू घाटी के उत्तर पूर्व में स्थित चंद्रघाटी के बीच 8000 फीट की ऊंचाई पर बसे मलाणा गांव में यह व्यवस्था अधिष्ठाता देवता जमलू के अनुसार ही लागू होती है. यहां के लोगों की जीवन शैली और रिति-रिवाज भी कुल्लू क्षेत्र से पूरी तरह से अलग है. देवता के कारदार रिडकू राम, पंचायत के पूर्व उपप्रधान भीम राम, सुई राम, बुधराम के अनुसार मलाणा में संसद के सदस्यों का आदेश सबके लिए सर्वोपरि है. नियमों की अवहेलना करने वाले को देवता के आदेश अनुसार संसद ही दंड का प्रावधान करती है.

ग्रीस से मिलता है संसदीय ढांचा

मलाणा गांव की संसद का स्वरूप ग्रीस से मिलता जुलता बताया जाता है, संसद के आठ सदस्यों का चुनाव होता है. जबकि अन्य सदस्यों को मनोनीत किया जाता है. मनोनीत सदस्यों का चुनाव गूर और पुजारियों में आम सहमति से किया जाता है. मलाणा की संसद में दो सदन है. निपटारे के लिए मामला पहले निचले सदन में रखा जाता है. यहां से व्यक्ति संतुष्ट न होने पर ऊपरी सदन में मामला रखता है. देव आदेश पर हुआ फैसला सभी को मान्य होता है.

ग्रीक देश जैसे लोगों की तरह दिखते हैं लोग

यह लोग अपने सुबूत के तौर पर जमलू देवता के मंदिर के बाहर लकड़ी की दीवारों पर की गई नक्काशी को दिखाते है. यहां दर्ज नक्काशी में युद्ध करते सैनिकों को दिखाया दिखाया गया है. यहां के लोगों की भाषा भारतीय भाषाओं से अलग और ग्रीक भाषा से मिलता जुलता है. यहां के लोगों की शक्ल-सूरत भी ग्रीक देश के लोगों की तरह ही है.