पंजाब उपचुनावों में सत्‍ताधारी पार्टी को ही मिलती रही है जीत

खबरें अभी तक। पंजाब में अधिकतर उपचुनावों में सत्‍ताधारी पार्टी की जीत होती रही है। शाहकोट विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस की जीत ने इस पर फिर मुहर लगाई है। यहां कांग्रेस की 38 हजार से ज्यादा मतों की जीत से फिर साफ हो गया है कि अपने हलके में विकास करवाने के लिए वोटर मौजूदा सरकार पर ही अपना विश्वास जताते हैं। 45 साल से अकाली दल के गढ़ को अब तक कांग्रेस ने तभी भेदा था। जब वह चुनाव से बाहर रहा हो, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। न तो यहां से जीतते रहे अजीत सिंह कोहाड़ के निधन की सहानुभूति लहर चली और न ही विपक्ष कहीं यह साबित कर पाया कि एक साल में वोटर सरकार से निराश हो गए हैं।

2009 में जब शिरोमणि अकाली दल और भाजपा गठजोड़ की सरकार थी तो काहनूवान की सीट पर हुए उपचुनाव में सेवा सिंह सेखवां ने कांग्रेस के फतेहजंग बाजवा को 12,044 मतों से परास्त किया। 2012 में एक बार फिर से सीट सरकार के हाथ ही आई। भाजपा के विधायक अमरजीत सिंह शाही के निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी सुखजीत कौर शाही ने कांग्रेस के अरुण डोगरा को 47,431 मतों के भारी अंतर से परास्त किया।

2013 में कांग्रेस को छोड़कर अकाली  दल में शामिल हुए जोगिंदरपाल जैन अकाली दल की टिकट पर मोगा से फिर से विजयी हो गए और सीट एक बार फिर से सत्ता पक्ष के पास चली गई। जैन ने कांग्रेस के विजय साथी को 18849 वोटों के अंतर से हराया।

2014 में अकाली दल ने कांग्रेस की एक और विकेट अपने पक्ष में गिरा ली। तलवंडी साबो से कैप्टन अमरिंदर सिंह के करीबी माने जाने वाले जीत मोहिंदर सिंह सिद्धू अकाली दल में शामिल हो गए और उन्होंने उपचुनाव में कांग्रेस के हरमिंदर सिंह जस्सी को 46642 मतों के अंतर से हराया।