पानी बनता जा रहा है ज़हर

खबरें अभी तक।  आजकल घर-घर में नल लगे होने के कारण पेयजल स्रोतों की अनदेखी होने से उनका अस्तित्व मिटता जा रहा है, जिसका खमियाजा अब गर्मियों के दिनों में लोगों को भुगतना पड़ रहा है, क्योंकि ब्यास नदी और अन्य खड्ड व नालों में पानी कम व गंदला होने से पेयजल आपूर्ति नाममात्र की रह गई है। वहीं गर्मियों में भी इन प्राकृतिक जल स्रोतों में से निकलने वाले ठंडे ताजे जल की कीमत का एहसास होने लगा है। इसी तरह की कुछ कहानी बयां कर रहे हैं क्षेत्र के कई गांवों में बने प्राकृतिक जल स्रोत। कभी राजाओं के काल में बनी यह बावड़ी, जब नलों का आगमन नहीं हुआ था तो भी ये गांववासियों की वर्ष भर प्यास बुझाया करती थीं। नलों के आने के बाद लोगों ने बावड़ी की देखभाल करनी छोड़ दी, जिससे इसके किनारे उगी घास तथा झाड़ियों के कारण यह अब खंडहर में बदलती जा रही है।

इन प्राकृतिक जल स्रोतों से पानी लाने में आसानी हो

समाजसेवी लोगों आशीष, संजीव कुमार, राकेश कुमार व सुनील ने सरकार से गुहार लगाई है कि ऐसे प्राचीन जल स्रोतों को संभालने के लिए भी वह कोई पग उठाए, ताकि हमारे पूर्वजों द्वारा बनाई गई ये धरोहरें आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित रह सकें और बरसात के दिनों में इन प्राकृतिक जल स्रोतों से पानी लाने में आसानी हो। नादौन शहर में दर्जनों ऐसे जल स्रोत हैं, जिनकी अगर देखभाल, मुरम्मत कार्य तथा साफ-सफाई हो तो ये अमृत तुल्य जल देने में समर्थ हैं। नगर पंचायत प्रधान रीना देवी ने माना कि पहले लोग सेवा की भावना से प्राकृतिक जल स्रोतों का रख-रखाव स्वयं करते थे, परंतु अब ऐसा नहीं रहा है। फिर भी नगर पंचायत ऐसे जल स्रोतों को ठीक करवाएगी।