सवालों के घेरे में कोलेजियम, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अनदेखी का आरोप

सुप्रीम कोर्ट के दूसरे नंबर के वरिष्ठतम जज जस्टिस चेलमेश्वर ने सरकार पर न्यायपालिका में दखलंदाजी का आरोप तो लगाया है। लेकिन खुद सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम भी सवालों के घेरे में आ गया है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, जिस जज को कोलेजियम ने प्रोन्नत करने का फैसला किया था उसके खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों को गोपनीय जांच में ही निपटा दिया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक जांच नहीं की गई थी। यहां तक कि जस्टिस चेलमेश्वर के पत्र में भी उस जज के खिलाफ सरकारी निर्देश पर शुरू हुई जांच पर आपत्ति जताई गई है।

जस्टिमस चेलमेश्वर का आर-

सरकार के सूत्र के मुताबिक जस्टिस जे. चेलमेश्वर की दखलंदाजी के आरोप पर सरकार का कहना है कि उसे जिला जज पीके भट्ट की प्रोन्नति की संस्तुति पर संज्ञान लेने की कोई जल्दी नहीं है। गौरतलब है कि जस्टिस चेलमेश्वर ने कर्नाटक के जज पी. कृष्ण भट का जिक्र किया था। जस्टिस चेलमेश्वर का आरोप था कि भट्ट को हाईकोर्ट में प्रोन्नत करने के कोलेजियम के फैसले पर सरकार न सिर्फ बैठी रही बल्कि अपने स्तर पर ही कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर भट्ट के खिलाफ जांच शुरू करवा दी। जबकि सरकार को कोई भी आग्रह सुप्रीम कोर्ट के जरिए करना चाहिए था।

सरकार के सूत्रों का कहना है कि कोलेजियम ने सिफारिश करते समय उनके खिलाफ महिला जज के लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों पर ध्यान नहीं दिया। आरोपों की सुप्रीम कोर्ट के विशाखा फैसले में तय दिशा-निर्देशों के मुताबिक जांच नहीं हुई बल्कि संक्षिप्त जांच करके उसे क्लीनचिट दे दी गई। सरकार की ओर से सवाल यह उठाया गया कि क्या महिला न्यायिक अधिकारी जिसने अपने वरिष्ठ पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाते हुए शिकायत की है, उसे विशाखा जजमेंट के मुताबिक निष्पक्ष जांच में अपना पक्ष रखने का मौका नहीं मिलना चाहिए था। क्या निष्पक्षता और शुचिता का तकाजा ये नहीं था कि सवालों में घिरे दागी जज को निष्पक्ष जांच पूरी होने तक हाईकोर्ट में प्रोन्नति के लिए सिफारिश न की जाए।