कैदियों को ठीक से रखो, या जेल से बाहर करो: सुप्रीम कोर्ट

जेल में कैदियों को जानवरों की तरह नहीं रखा जा सकता। यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने की है। देश की 1,300 जेलों में निर्धारित कैदियों की संख्या से 600 प्रतिशत तक ज्यादा कैदी बंद होने पर सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताई है। सरकारों से कहा है, यदि आप उन्हें ठीक तरीके से नहीं रख सकते तो बाहर कीजिए। शीर्ष अदालत ने जेलों की दशा को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए लापरवाही के लिए राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों की फटकार लगाई है।

जस्टिस एमबी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के डीजीपी (जेल) को पूर्व आदेशों का पालन न करने पर अवमानना का मामला शुरू करने की चेतावनी दी है। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में दिए आदेश में इन उच्च अधिकारियों को जेल में कैदियों की संख्या से निपटने के लिए योजना का मसौदा पेश करने को कहा था। हालात पर नाराजगी जताते हुए पीठ ने कहा, जेलों की दशा दुर्भाग्यपूर्ण है। कैदियों के भी मानवाधिकार होते हैं और उन्हें जानवरों की तरह नही रखा जा सकता। पीठ ने कहा, उन्हें न्याय मित्र से सूचना मिली है कि ज्यादातर जेलों में कैदियों की संख्या 150 प्रतिशत ज्यादा है जबकि एक में तो यह 609 प्रतिशत अधिक है। पीठ ने इस मामले में अंडर ट्रायल रिव्यू कमेटियों के कामकाज पर भी सवाल उठाए। जेल के हालात पर नजर रखने के लिए ये कमेटियां हर जिले में गठित हैं। इन कमेटियों के कामकाज को प्रभावी बनाने के लिए राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों से दो हफ्ते में योजना पेश करने को कहा गया है। शीर्ष अदालत ने जेल कर्मियों के खाली पड़े पदों और उन्हें भरने के लिए किए गए प्रयास के बारे में डीजीपी (जेल) से दो हफ्ते में जानकारी मांगी है। उल्लेखनीय है कि देश की सभी जेलों में विभिन्न श्रेणी के कर्मियों के 77,230 पद हैं जबकि 31 दिसंबर, 2017 को इनमें से केवल 24,588 कार्यरत थे।