2025 तक भारत में हकीकत बन जाएगा ‘क्लीन मीट’, जानिए किस तरह होता है इसका उत्पादन

प्रयोगशाला में तैयार किया गया ‘क्लीन मीट’ भारत में 2025 तक हकीकत बन सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि क्लीन मीट के जरिये उपभोक्ता अमानवीय तौर-तरीकों और टिकाऊ न साबित होने वाली औद्योगिक पशु कृषि का समर्थन किए बिना मीट उत्पादों का आनंद उठा सकेंगे। एक पशु कल्याण संगठन ह्युमन सोसाइटी इंटरनेशनल (एचएसआइ) और हैदराबाद स्थित सेंटर फार सेल्युलर एंड मालेक्यूलर बायोलाजी (सीसीएमबी) ने भारत में प्रयोगशाला में तैयार किए जाने वाले मीट के उत्पादन के लिए हाथ मिलाया है।

यह साझेदारी ‘क्लीन मीट’ तैयार करने के लिए तकनीक को प्रोत्साहन देने के लिए की गई है। खास बात यह है कि इस पहल में नए उद्यमी और इस व्यवसाय पर नियंत्रण के लिए बनाए जाने वाले नियामक एक ही छत के नीचे कार्य करेंगे। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्लीन मीट इस वर्ष के अंत तक बाजार में उपलब्ध हो जाएगा, जबकि भारत में यह 2025 तक वास्तविकता के धरातल पर उतरेगा।

एचएसआइ की उपनिदेशक आलोकपर्णा सेनगुप्ता ने बताया कि क्लीन मीट की जरूरत इसलिए महसूस हो रही है, क्योंकि अभी मांस के उत्पादन का जो बाजार है वह टिकाऊ नही है। मांस के उत्पादन और व्यवसाय में जो तौर-तरीके अपनाए जाते हैं वे पशुओं के लिए किसी भी तरह कल्याणकारी नहीं कहे जा सकते। इसके चलते न केवल पर्यावरण के समक्ष खतरे उत्पन्न हो रहे हैं, बल्कि खाद्य सुरक्षा भी संकट में पड़ रही है।

2013 में सबसे पहले प्रयोगशाला में बीफ बर्गर तैयार किया गया था। यह क्लीन मीट की दिशा में पहला कदम था। उस समय एक पैटी की कीमत तीन लाख 75000 डालर थी। हालांकि उसके बाद से यानी पिछले पांच वर्षों में इस दिशा में तकनीक के विकास को लेकर काफी काम हुआ है। भारतीय मूल की कार्डियोलाजिस्ट डॉ. उमा वैलेटी ने एक कंपनी की स्थापना की है, जिसका नाम मेम्फिस मीट है। यह कंपनी मीट बाल तैयार कर रही है, जिनकी कीमत करीब 1300 अमेरिकी डालर है।