ध्रुपद गायन में नाम, विदेश में भी मिल रहा सम्मान

पश्चिम चम्पारण जिला मुख्यालय बेतिया यहां की फिजां में घुली है धु्रपद गायन की मीठी तान। इसे जिंदा रखे हुए हैं-बानुछापर के इंद्रकिशोर मिश्र। वे बेतिया घराने की आठवीं पीढ़ी के कलाकार हैं। 2001 में अमेरिका के न्यूयार्क में भी कार्यक्रम पेश कर चुके हैं। ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, फ्रांस व स्पेन से आए कई कलाकारों कोसंगीत सिखा चुके हैं। इनके मुरीदों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी हैं। विभिन्न अवसरों पर वे सात बार इन्हें सम्मानित कर चुके हैं।

64 वर्षीय इंद्रकिशोर को धु्रपद गायन विरासत में मिली। होश संभालने के साथ ही पिता की संगत में गायकी सीखनी शुरू की। धीरे-धीरे इसमें पारंगत होने लगे। देश में कई जगहों पर प्रस्तुति कर अमिट छाप छोड़ी। 2001 में अमेरिका के न्यूयार्क में कार्यक्रम पेश किया। न्यूयार्क की मेकर कंपनी इनके गायन पर कैसेट भी जारी कर चुकी है। इस विधा से परिवार नहीं चल सकता था, इसलिए पथ निर्माण विभाग में चतुर्थवर्गीय नौकरी कर ली। इंद्रकिशोर कहते हैं, उनके पूर्वज पंडित युवराज मलिक और पंडित जसराज मलिक शाहजहां के दरबार में राज गायक थे। उन्हें वर्ष 1640 में तत्कालीन बेतिया महाराज आनंदकिशोर ¨सह व नवल किशोर सिंह यहां लाए थे।

इंद्रकिशोर के विदेशी शिष्यों की लिस्ट भी कम नहीं है। इनमें फ्रांस के फ्रैडिक, स्पेन की करीना, ऑस्ट्रेलिया के एलेक्जेंडर, अमेरिका की मेरी जॉन और स्पेन की फ्रैडिका प्रमुख हैं। इन शिष्यों ने उनके घर पांच से छह माह तक रहकर संगीत साधना की। विदेशी शिष्यों ने उनके घर का निर्माण भी कराया है। इंद्रमोहन कहते हैं,एलेक्जेंडर ने काफी नाम कमाया है। वह उनके साथ बनारस में कार्यक्रम पेश कर चुका है। भारतीय शिष्यों में चेन्नई की सुमित्रा रंगनाथन की ख्याति देश भर में है। अभी उनके पास करीब दो दर्जन शिष्य हैं। प्रतिदिन सुबह-शाम चार से पांच घंटे रियाज कराते हैं। काजल सिंह और भारती वर्णवाल इनमें से एक हैं। दोनों शिष्यों का मानना है कि संगीत की यह विधा उन्हें सुकून देती है।