घरेलू और निर्यात मांग को पूरा करने के लिए मक्के की खेती पर दिया जा रहा है जोर

मक्के की घरेलू व निर्यात की बढ़ती मांग को देखते हुए सरकार इसकी खेती पर जोर देगी। मक्के की खेती का केवल 15 फीसद रकबा ही सिंचित है, बाकी खेती बारिश पर निर्भर है। उत्पादकता बढ़ाने के लिए हर खेत को पानी देने की योजना के तहत सिंचाई के साधन मुहैया कराए जाएंगे। भारतीय मक्का सम्मेलन में केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि हमारे कृषि वैज्ञानिकों के प्रयासों से मक्के के उत्पादन में काफी इजाफा हुआ है।

उन्होंने कहा कि मक्के की संकर प्रजाति का रकबा बहुत तेजी से बढ़ रहा है। मक्के की खपत में भी खूब वृद्धि हुई है। सम्मेलन में हिस्सा लेने आई कंपनियों के प्रतिनिधियों से सिंह ने कहा कि वे मक्का कारोबार की संभावनाएं तलाशें और किसानों को उससे जोड़ें। सिंह ने घरेलू किसानों की मेहनत पर भरोसा जताते हुए कहा कि मक्के की पैदावार 2.7 करोड़ टन तक पहुंच गई है। आजादी के बाद देश में मक्के की पैदावार 17.3 लाख टन तक सीमित थी, जिसमें अब तेजी से वृद्धि हो रही है।

कृषि मंत्री सिंह ने कहा कि मक्का उपभोक्ताओं के खान-पान का हिस्सा बन चुका है। वैश्विक स्तर पर भी इसकी मांग बढ़ रही है। मांग की वजह से मक्के की उत्पादकता 2.43 टन हो गई है। घरेलू उपभोक्ताओं में गेहूं व चावल के बाद मक्का ज्यादा पसंद किया जाता है। मक्के की खेती मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और राजस्थान में 50 फीसद गन्ने का उत्पादन होता है।

मक्का निर्यात में भारत पांचवें स्थान पर है। हालांकि देश की 25 फीसद जनता ही इसे ज्यादा खाती है। संकर प्रजाति के मक्के में खूब पोषक तत्व हैं, जो पोषक आहार के रूप में लोग पसंद कर रहे हैं। देश के 28 राज्यों के 265 जिलों में मक्के की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। केंद्र सरकार इसके लिए पर्याप्त वित्तीय मदद मुहैया करा रही है। घरेलू खपत की संभावनाओं को खंगालने और उसे पूरा करने की दिशा में भी कार्य योजना तैयार है।