बिना कॉपी जांचें दिए नंबर, कोर्ट ने लगाया एक लाख का जुर्माना, मूल्यांकनकर्ता भी प्रतिबंधित

हाई कोर्ट की युगल पीठ ने मप्र के ग्वालियर स्थित जीवाजी विश्वविद्यालय (जेयू) के अधिकारियों की कार्य प्रणाली पर नाराजगी व्यक्त की है। कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि विवि के अधिकारियों की कार्य प्रणाली ने संस्थान की साख गिराई है। संस्थान में विद्यार्थियों के खिलाफ कार्य किया जा रहा है। बिना कॉपी चेक किए नंबर दिए जा रहे हैं। इसलिए एक लाख रुपये का अर्थदंड लगाया जाता है और अर्थदंड की राशि कॉपी के मूल्यांकनकर्ता से वसूल कर छात्रा को दी जाए, क्योंकि छात्रा के दो साल बर्बाद हो गए।

दरअसल, दमयंति चौपड़ा ने वर्ष 2014-15 में बीएड की परीक्षा दी थी। उन्हें हिंदी विषय में 11 नंबर दिए गए। पुनर्मूल्यांकन में एक नंबर बढ़ा दिया गया। इसके बाद सूचना का अधिकार के तहत कॉपी ली गई। उसमें खुलासा हुआ कि कॉपी के 40 पेज में से एक भी पेज पर राइट का निशान नहीं लगा था। बिना कॉपी चेक किए नंबर दिए गए और पुनर्मूल्यांकन में भी कॉपी नहीं खोली गई। छात्रा ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि कॉपी में 40 पेज हैं। पूरी कॉपी भरी हुई है, लेकिन कॉपी को बिना जांचें नंबर दे दिए। इसके बाद हाई कोर्ट ने मूल कॉपी तलब कर ली। इस संबंध में हाई कोर्ट ने जेयू से शपथ पत्र पर स्पष्टीकरण मांगा था। उप कुलसचिव राजीव मिश्रा ने शपथ पत्र पेश किया। मिश्रा ने अपने शपथ पत्र में कहा कि 16 मार्च 2016 को पुनर्मूल्यांकन किया गया था, लेकिन उसमें कोई बदलाव नहीं आया था। कोर्ट ने पाया कि शपथ पत्र में गलत तथ्य पेश किए गए हैं। झूठा शपथ पत्र पेश करने पर राजीव मिश्रा को भी अवमानना का दोषी माना है।