कै. अमरेन्द्र सिंह के शहर पटियाला को खासी तरजीह मीली

खबरें अभी तक। पंजाब में कै. अमरेन्द्र सिंह के नेतृत्व में बनी कांग्रेस की सरकार को एक वर्ष पूरा हो गया है, परंतु विधानसभा चुनावों में टिकट के दावेदारों की वह फौज आज खुद को ठगा-सा महसूस कर रही है जिन्हें कैप्टन ने यकीन दिलाया था कि कांग्रेस सरकार बनने पर उन्हें महत्वपूर्ण बोर्डों व कार्पोरेशनों में एडजस्ट कर दिया जाएगा।

कै. अमरेन्द्र सिंह ने यह भी भरोसा दिया था कि सरकार बनने पर अनेकों विकल्प मिलेंगे और चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवारों की जीत के लिए किए प्रदर्शन के अनुरूप उन्हें उचित स्थान पर एडजस्ट किया जाएगा, जिसके बाद कांग्रेस कार्यकत्र्ताओं ने एकजुटता का परिचय देते हुए चुनावों में खूब दम दिखाया और कांग्रेस 77 सीटें जीत कर पंजाब की सत्ता पर काबिज हुई लेकिन मजबूत दावेदारों के हाथों में आज सिवाय झुनझुने के कुछ दिखाई नहीं दे रहा है।

मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल करने के बाद हालात बिल्कुल विपरित हो गए व कैप्टन कार्यकत्र्ताओं की बजाय अपने करीबियों को ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं। यहां तक कि विधायकों की भी उनके दरबार में कोई सुनवाई नहीं हो रही है। बोर्डों की चेयरमैनियों में भी अमरेन्द्र के  शहर पटियाला को खासी तरजीह दी जा रही है।

मुख्यमंत्री परिवार के नजदीकियों और पटियाला से सबंधित पूर्व कैबिनेट मंत्री लाल सिंह को पंजाब मंडी बोर्ड व के.के. शर्मा को पी.आर.टी.सी. का चेयरमैन, संजीव गर्ग को स्टेट इन्फॉर्मेशन कमिश्रर व आर.पी. पांडव को पंजाब स्टेट पावर कार्पोरेशन का डायरैक्टर बनाकर उन्हें प्रदेश के महत्वपूर्ण विभागों में उच्च पदों पर एडजस्ट किया गया।

कै. अमरेन्द्र अपने संग एक दर्जन दरबारियों को लगा चुके हैं ओ.एस.डी.
इससे पूर्व कैप्टन ने सत्ता संभालते ही अपने साथ दर्जन भर अनावश्यक ओ.एस.डीज के रूप में अपने दरबारियों को रखा। मुख्यमंत्री के ईद-गिर्द कांग्रेसियों की बजाय ब्यूरोक्रेट्स ही तैनात किए गए हैं। कांग्रेस गलियारों में पटियाला से संबंधित कुछ और नाम भी खासे चर्चा में हैं जिन्हें मुख्यमंत्री जल्द ही किन्हीं विभागों में एडजस्ट करने जा रहे हैं। ऐसे हालातों से कांग्रेस नेताओं में आक्रोश लगातार बढ़ रहा है।

कांग्रेस नेताओं का कहना है कि अगर मुख्यमंत्री के परिवार ने अपने रिश्तेदारियों, चहेतों व दोस्तों को ही हर स्थान पर एडजस्ट करना है तो चुनावों में उन्हें झूठे सब्जबाग क्यों दिखाए गए। इसके कारण उम्मीदवारों में निरंतर बढ़ते रोष से पार्टी में बगावत के आसार बन गए हैं।

कई दिग्गज कांग्रेसी तो मौके की ताक में चुप बैठे सब कुछ सह रहे हैं, क्योंकि अभी तक कैप्टन ही पावर का एकमात्र केंद्रङ्क्षबदु बने हुए हैं और कई विभागों की नियुक्तियां होनी अभी बाकी हैं, परंतु कांग्रेसियों में पनपी निराशा के आलम की इस स्थिति अगर इसी तरह बनी रही तो कांग्रेस को इसका खमियाजा 2019 के लोकसभा चुनावों में भुगतना पड़ सकता है।

अमरेन्द्र ने 2017 के चुनावों में बगावत रोकने के लिए 1544 दावेदारों को दिए थे कई प्रलोभन
विधानसभा चुनावों के दौरान पंजाब की 117 विधानसभा सीटों के लिए 1661 कांग्रेसियों ने टिकट के लिए दावेदारी की थी, चूंकि वर्ष 2012 के विधानसभा चुनावों में अपनी सरकार बनने को लेकर कांग्रेस नेतृत्व इतना आश्वस्त था कि प्रदेशाध्यक्ष कै. अमरेंद्र सिंह ने बागियों को मनाने और उन्हें चुनाव से हटाने का कोई प्रयास नहीं किया जिसका नतीजा यह निकला कि जहां कहीं भी बागी कांग्रेसी पार्टी के उम्मीदवार के विरुद्ध उतरे वहां कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था। 22 हलकों में बागियों ने अपना प्रभाव दिखाया जिस कारण कांग्रेस केवल 46 सीटों तक सिमट कर रह गई थी।

इस कारण 2017 के चुनावों में कै. अमरेन्द्र दोबारा ऐसा रिस्क नहीं लेना चाहते थे।  उन्होंने टिकटों के बंटवारे के दौरान ही उम्मीदवारों को अनेकों प्रलोभन देते हुए कहा था कि केवल 117 विधानसभा सीटें होने के कारण 1544 कांग्रेसी उम्मीदवार पार्टी टिकट से वंचित रहेंगे। कै. अमरेन्द्र ने कहा था कि जीतने वाले कांग्रेस विधायकों और हारे उम्मीदवारों में से किसी को भी बोर्ड, कार्पोरेशन या ट्रस्ट में कोई पद नहीं दिया जाएगा।

कै. अमरेन्द्र ने भीतरघात कंट्रोल करने के लिए एक अचूक तीर छोड़ते हुए कहा था कि केवल कांग्रेस प्रत्याशी की जीत का मार्ग प्रशस्त करने वाले दावेदारों को ही चेयरमैनियों से नवाजा जाएगा परंतु अब उक्त 1544 दावेदारों सहित अनेकों वरिष्ठ नेताओं को पार्टी नेतृत्व द्वारा उनके साथ किए वायदे अब सच होते दिखाई नहीं दे रहे हैं।