पांच वर्ष पहले जहां कहीं नहीं थी भाजपा अब वहीं बन रही उसकी सरकार

उत्तर पूर्व के नगालैंड, मेघालय और त्रिपुरा के नतीजे काफी कुछ एक्जिट पोल में दिखाए गए नतीजों के आधार पर आए। कहा जा सकता है कि भाजपा ने 2016 में उत्तर-पूर्व में असम से जो अपनी जीत की राह शुरू की थी वह उस पर लगातार आगे बढ़ रही है। आपको बता दें कि 2016 में पहली बार भाजपा ने असम के रूप में उत्तर-पूर्व के किसी राज्‍य में अपनी सरकार का गठन किया था। इसके बाद वर्ष 2017 में पहली बार मणिपुर में भाजपा ने अपनी सरकार बनाई। हैरत की बात ये है कि पांच वर्ष पहले तक भाजपा यहां पर अपनी राजनीतिक जमीन नहीं बना पाई थी।

त्रिपुरा में भाजपा को स्‍पष्‍ट बहुमत मिला है। बहरहाल इन सभी से ज्‍यादा दिलचस्‍प बात ये है कि आखिर भाजपा की उत्तर पूर्व में कोई राजनीतिक जमीन न होने के बाद भी भाजपा को इतनी बड़ी सफलता कैसे मिल गई। इसके अलावा कभी कांग्रेस लगातार क्‍यों चूक रही है। त्रिपुरा में जहां भाजपा ने बीते 25 वर्षों की माणिक सरकार को उखाड़ फैंका है वहीं नगालैंड में कांग्रेस कहीं है ही नहीं। हां अलबत्ता मेघालय में कांग्रेस की सरकार जरूर है। लेकिन मौजूदा राजनीतिक समीकरणों के मद्देनजर भाजपा यहां पर भी सरकार बनाने की संभावनाओं पर विचार कर रही है। मेघालय के इंचार्ज नलिन कोहली और राम माधव के बयान से इस बात की पुष्टि हो गई है। माधव ने इसका श्रेय वहां के कार्यकर्ताओं को दिया है। वहीं उत्तर-पूर्व में मिली जीत से उत्‍साहित भाजपा के नेता और केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है कि शुरुआत में हम कांग्रेस मुक्‍त भारत की बात करते थे, लेकिन अब वामपंथ मुक्‍त भारत भी कहना गलत नहीं होगा। उन्‍होंने कहा कि पूरा उत्तर-पूर्व आज भाजपा के साथ है।

पूरे उत्तर-पूर्व के राज्यों की सियासी जमीन पर नजर डालने से पहले हम जरा उन राज्‍यों पर नजर डाल लेते हैं जहां पर विधानसभा चुनाव हुए हैं। सबसे पहले त्रिपुरा की यदि बात करें तो यहां की करीब 35 लाख की आबादी है जिसमें करीब 12-13 लाख लोग नाथ संप्रदाय से जुड़े हैं। यानी यहां की एक तिहाई आबादी नाथ संप्रदाय को मानती है। यहां पर पहले ही माना जा रहा था कि इस बार इस संप्रदाय की भूमिका चुनाव में काफी अहम होगी। ऐसा इसलिए क्‍योंकि उत्तर प्रदेश में योग आदित्‍यनाथ मौजूदा समय में नाथ संप्रदाय के प्रमुख होने के साथ साथ राज्‍य के मुख्‍यमंत्री भी हैं। यहां के विधानसभा चुनाव में वह स्‍टार कैंपेनर भी थे। लिहाजा यह कहने में कोई परहेज नहीं होना चाहिए कि योगी को यूपी में सत्ता सौंपने का फायदा भाजपा को त्रिपुरा में भी हुआ है। यहां पर ये भी जानना बेहद दिलचस्‍प है कि वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने त्रिपुरा में 50 उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से 49 की जमानत जब्त हो गई थी। उस वक्‍त भापजा को यहां केवल 1.87 फ़ीसदी वोट मिले थे और वो एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। वहीं माकपा को 49 सीटें मिली थीं जबकि कांग्रेस को 10 सीटों से संतोष करना पड़ा था। इसका साफ सीधा अर्थ ये है कि बीते कुछ वर्षों में भाजपा ने अपनी स्थिति को पूरे देश में मजबूत किया है।