निर्भया फंड और दुष्कर्म पीड़ितों के नाम पर मजाक कर रही हैं राज्य सरकारें

खबरें अभी तक। महिला सुरक्षा और उनके सम्मान के बड़े-बड़े वादे और दावे करने करने वाली सरकारें महिलाओं के प्रति वाकई में कितनी संवेदनशील और गंभीर हैं, इसका अहसास इस बात से होता है कि शीर्ष अदालत के आदेश के बाद भी देश के 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों ने अपने राज्यों में दुष्कर्म पीड़ित महिलाओं को मुआवजे के मद में निर्भया फंड से कितना पैसा मिला और उसमें से उन्होंने कितना पीड़ितों में बांटा, इसका हलफनामा अदालत में दाखिल नहीं किया है। न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर व न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने हाल ही में इस मामले में इन सरकारों को फटकार लगाते हुए कहा, ‘हमारे आदेश के बावजूद हलफनामा दाखिल नहीं करना यह दिखलाता है कि राज्य सरकारें महिलाओं की सुरक्षा को लेकर चिंतित और गंभीर नहीं हैं।’ अदालत की यह नाराजगी वाजिब भी है।

मुआवजे पर हैरानी-

पिछले महीने नौ जनवरी को अदालत ने इस संबंध में देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से यह जानकारी मांगी थी, लेकिन इतनी छोटी सी जानकारी राज्य सरकारें अदालत को नहीं दे पाईं। जिन राज्यों ने इस बात का ब्योरा नहीं दिया उनमें असम, छत्तीसगढ़, गोवा, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली व लक्षद्वीप शामिल हैं। बहरहाल जिन राज्यों ने हलफनामा दाखिल कर इस संबंध में ब्यौरा दिया, अदालत उससे भी संतुष्ट नहीं थी। मध्यप्रदेश की ओर से दाखिल हलफनामे में दुष्कर्म पीड़ित महिलाओं को दिए गए मामूली मुआवजे पर अदालत ने हैरानी और नाराजगी जताते हुए राज्य सरकार से कहा कि ‘उसके यहां कुल 1951 दुष्कर्म पीड़ित हैं और वह प्रत्येक को महज 6000 और 6500 रुपये मुआवजा दे रही है।