खबरें अभी तक। राष्ट्रीय राजमार्ग पठानकोट-मंडी पर प्रस्तावित फोरलेन की आहट से उपमंडल नूरपुर के राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे बसे लोगों को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है तो वहीं पौंग बांध विस्थापितों को एक बार फिर से विस्थापन का दंश झेलना पड़ेगा। 1970 के दशक में पौंग बांध की योजना बनने से वहां से कई लोगों की अपनी निजी भूमि व रिहायशी मकान उस बांध की जद में आ गए थे।
उस समय विस्थापित हुए लोगों में से अनेक लोगों ने उपमंडल नूरपुर स्थित राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे यह सोचकर महंगे दामों पर भूमि खरीदी थी कि रिहायशी घरों के साथ साथ भविष्य में उनके लिए स्वरोजगार करने का भी अवसर प्राप्त होगा। बड़ी संख्या में इन लोगों ने नूरपुर क्षेत्र के कंडवाल से लेकर जौंटा तक अपने न केवल मकान बनाए बल्कि स्वरोजगार के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे अपनी दुकानें व अन्य व्यावसायिक कारोबार खोलकर अपना जीवन शुरू किया।
अब जबकि व्यवसाय ठीक ढंग से चल पड़ा तो उक्त मार्ग पर फोरलेन बनने की आहट से एक बार फिर से उन्हें उजडऩे का डर सताने लगा है, ऐसे में उनके भविष्य और रोजगार का क्या होगा।
वर्तमान मूल्य के आधार पर मिले मुआवजा
ये लोग सरकार से एक ही आशा लिए हुए हैं कि फोरलेन की जद में आने वाली भूमि को कमर्शियल भूमि के तौर पर और रिहायशी मकानों व व्यवसायिक परिसरों का आज के दौर में चल रही मार्कीट वैल्यू के आधार पर मुआवजा मिलना चाहिए ताकि ये सब लोग अन्य जगह आसानी से बस सकें। उक्त लोगों ने बताया कि फोरलेन में मिलने वाली जो मुआवजा राशि बताई जा रही है उससे अन्य किसी जगह बसने के लिए मकान तक की भूमि भी नहीं मिल सकेगी। अत: सरकार लोगों को वर्तमान मूल्य के आधार पर मुआवजे का प्रावधान करवाए।
ये है चिंता का कारण
इनमें से अधिकतर लोग ऐसे भी हैं जो पौंग बांध में आई जमीन के बदले राजस्थान में मिलने वाले मुरब्बों के लिए अब भी संघर्ष कर रहे हैं लेकिन इस संघर्ष के बीच ही अब उन्हें एक बार फिर से बसने के लिए नई जगह की तालाश करनी पड़ेगी। इस बात को लेकर उनके माथे पर चिंता की लकीरें साफ तौर पर झलक रही हैं।