खबरें अभी तक। प्रेम दैदीप्यमान सूर्य की तरह है, जिसकी रश्मियों के संपर्क में आते ही हिंसा रूपी अंधकार मिट जाता है। इसका जीवंत उदाहरण बस्तर में देखने को मिल रहा है। जहां प्रेम अहिंसा का पाठ पढ़ा रहा है। उन दिलों को जीत रहा है, जिनमें प्रेम की जगह हिंसा ने डेरा जमा लिया था। प्रेम की जादूगरी इन युवा दिलों में जीने की तमन्ना जगा रही है। उन्हें इंसान होने का मतबल समझा रही है।
पिछले कुछ सालों की बात करें तो केवल बस्तर में ही सैकड़ों नक्सली जोड़ों ने प्रेम विवाह कर नए जीवन में प्रवेश किया और बंदूक का साथ हमेशा के लिए छोड़ दिया। यह सिलसिला तेजी से चल पड़ा है। नक्सल रणनीतिकार बौखला उठे हैं। लेकिन यह उनके वश में नहीं कि इश्क पर रोक लगा सकें।
इलाज अपना कराते फिर रहे हो जाने किस किस से, मोहब्बत कर के देखो ना मोहब्बत क्यूँ नहीं करते…
हिंसा छोड़कर विवाह बंधन में बंधने वाले प्रेमी जोड़े समाज की मुख्यधारा में आ रहे हैं। हालात कुछ यूं बन रहे हैं कि अब नक्सली सरगनाओं को प्रेम शब्द से ही डर लगने लगा है। दरअसल नक्सल रणनीतिकार हमेशा ही प्रेम के खिलाफ रहे हैं।
नक्सली संगठन में शामिल साथियों को भी शादी की इजाजत नहीं रहती है। उनपर कड़ी नजर रखी जाती है। हिंसा को अपना आदर्श मानने वाले इन नक्सली सरगनाओं को इस बात का इल्म है कि प्रेम के सामर्ने हिंसा कतई नहीं टिक सकती। इसलिए उन्हें सबसे अधिक डर है तो प्रेम से। प्रेम उनर्के हिंसक मंसूबों पर पानी फेर रहा है।