भूत-प्रेत और चुड़ैलों की बारात लेकर माता पार्वती से विवाह करने पहुंचे थे शिव

ख़बरें अभी तक। आपने शिव और माता पार्वती की विवाह की कहानी तो पढ़ी ही होगी अगर नहीं पढ़ी है तो आज हम आपको उनके विवाह की यह अद्भूत कहानी बताएंगे। पुराणों में भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह का कई बार जिक्र होता रहा है। कहा जाता है शिव और पार्वती का विवाह महाशिवरात्रि के दिन हुआ था।

माता पार्वती राजा हिमवान की बेटी थी उनकी माता का नाम उनकी माता का रानी मैनावती था। राजा के बहुत पूजा-पाठ के बाद उनके घर में एक कन्या पैदा हुई जिसका नाम पार्वती रखा गया। पार्वती अर्थात् पर्वतों की रानी। माता पार्वती शिव से विवाह करना चाहती थी। लेकिन उनको पाना इतना आसान नहीं था। सभी देवता गण भी यही चाहते थे कि शिव और पार्वती की शादी हो।

शिव को अपने पति के रुप में देखने के लिए माता पार्वती ने कठोर तपस्या शुरु कर दी। जब भगवान शिव को इस बारे में पता चला तब उन्होंने पार्वती की परीक्षा लेने के लिए के लिए सप्तऋषियों को भेजा। सप्तऋषियों ने पार्वती के पास जाकर उन्हें हर तरह से यह समझाने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि शिव औघड़, अमंगल वेषभूषाधारी और जटाधारी है। तुम तो महान राजा की पुत्री हो तुम्हारे लिए शिव योग्य वर नहीं है।

उनके साथ विवाह करके तुम्हें पूरे जीवन में कभी सुख की प्राप्ति नहीं होगी। तुम उसे पति के रूप में पाने की इच्छा छोड़ दो। उनके लाख समझाने के बाद भी पार्वती अपने जिद्द पर अड़ी रही। पार्वती की इस दृढ़ता को देखकर सप्तऋषि अत्यंत खुश हुए। उन्होंने पार्वती को सफल होने का आशीर्वाद दिया। सप्तऋषियों ने शिव और पार्वती के विवाह का लग्न मूहूर्त निकाल दिया और विवाह की तैयारियां भी शुरु हो गई। लेकिन मान्यता थी कि वर को अपने परिवार के साथ जाकर वधू का हाथ मांगना पड़ता है।

लेकिन समस्या ये थी कि भगवान शिव एक तपस्वी थे और उनके परिवार में कोई सदस्य नहीं था। अब ऐसी परिस्थिति में भगवान शिव ने अपने साथ भूत-प्रेत और चुड़ैलों को साथ ले जाने का निर्णय किया। आम तौर पर जहां देवता जाते थे, वहां असुर जाने से मना कर देते थे और जहां असुर जाते थे, वहां देवता नहीं जाते थे। मगर यह तो शिव का विवाह था, इसलिए उन्होंने अपने सारे झगड़े भुलाकर एक साथ आने का मन बनाया। शिव पशुपति हैं, मतलब सभी जीवों के देवता भी हैं, तो सारे जानवर, कीड़े-मकोड़े और सारे जीव उनकी शादी में उपस्थित हुए।

जैसा कि सबको पता ही है शिव तपस्वी थे तो इसके चलते वे इस बात से अवगत नहीं थे कि विवाह के लिए किस प्रकार से तैयार हुआ जाता है। तो उनके भूतों और चुड़ैलों ने उनको भस्म से सजा दिया और हड्डियों की माला पहना दी और जब ये अनोखी बारात पार्वती के घर पहुंची तो सभी देवता हैरान रह गए। वहां खड़ी महिलाएं डर कर भाग गई। भगवान शिव को इस विचित्र रूप में देखकर पार्वती की मां स्वीकार नहीं कर पाई और उन्होंने अपनी बेटी का हाथ देने से मना कर दिया। स्थितियां बिगड़ती देख पार्वती ने शिव से प्राथना की वो उनके रीति रिवाजों के मुताबिक तैयार होकर आंए।

भगवान शिव ने पार्वती की प्राथना स्वीकार कर ली और सभी देवताओं को फरमान दिया कि वो उनको अच्छे से तैयार करें। ये सुन सभी देवता हरकत में आ गए और उन्हें तैयार करने में जुट गए। भगवान शिव को दैवीय जल से नहलाया गया और रेशम के फूलों से सजाया गया। भगवान शिव का यह रुप अत्यंत सुंदर लग रहा था और जब भगवान शिव इस दिव्य रूप में पार्वती के द्वार पहुंचे तो पार्वती की मां ने उन्हें तुरंत स्वीकार कर लिया और ब्रह्मा जी की उपस्थिति में विवाह शुरू हो गया। और माता पार्वती और शिव ने एक दूसरे को वर माला पहनाई और विवाह संपन हुआ। इसके बाद सभी देवतागणों और भूतों ने शिव पार्वती को विवाह की शुभकामनाएं दी।