सीलिंग के लिए कौन दोषी है और क्या है इसका समाधान

खबरें अभी तक। आखिर सीलिंग के लिए कौन दोषी है और क्या है इसका समाधान. ये सवाल हर कोई पूछ रहा है और क्या सीलिंग को लेकर डीडीए के प्रस्ताव में अभी और भी पेंच हैं. जहां इन सवालों से हर कोई जूझ रहा है, आपको बताते हैं कि कहां है पेंच, क्या है समाधान और कौन है दोषी.

दरअसल ये बात 2006 से शुरू होती है, जब सीलिंग को लेकर दिल्ली में उबाल था. जिसके बाद 2300 के करीब सड़कों को नोटिफाई कर राहत दी गई थी. उसके बाद दिल्ली के मास्टर प्लान 2021 लागू कर दिया, जिसमें व्यापारियों को कन्वर्जन चार्ज के साथ-साथ जिन व्यपारियों ने अपने दुकान की साइज 300 स्क्वायर मीटर तक बढ़ा दिया था, उनको भी इस मास्टर प्लान में राहत दी गई थी.

क्या है मामला

जिस समय ये मास्टर प्लान लागू किया गया, उस समय 1 लाख 60000 के करीब व्यापारियों ने रजिस्ट्रेशन कराया और उस पर लगने वाला कन्वर्जन चार्ज दिया. साथ ही मास्टर प्लान के मुताबिक हर साल की 30 जून तारीख चार्ज देने की अंतिम तिथि दी गई. नहीं देने पर 10 गुना जुर्माने का प्रावधान कर दिया गया.

जिन्होंने भी नियमों का उल्लंघन कर अपनी दुकान 120 स्क्वायर या कुछ और मीटर से बढ़ाकर 300 स्क्वायर मीटर कर दिया था, उनको भी छूट दी गई और ये कहा गया कि जिन्होंने बना ली उनको राहत है, लेकिन अब आगे से कोई और न बने. वहीं एमसीडी को पार्किंग शुल्क लेकर पार्किंग की व्यवस्था करने को कहा गया. बेसमेंट में प्रोफेशनल ऑफिस (मतलब डॉक्टर, सीए या फिर वकील) बनाने की छूट दी गई थी.

हुआ क्या और कौन है दोषी

सीलिंग से राहत मिलते ही कुछ व्यपारियों ने कन्वर्जन चार्ज दिया और कुछ ने नही. 2008 में ये संख्या घटकर 36000 के करीब पहुंच गई और साल दर साल कन्वर्जन चार्ज देने वाले व्यापारियों की संख्या घटती चली गई. ज्यादातर व्यपारी कन्वर्जन चार्ज देना ही भूल गए और डिफ़ॉल्टर हो गए. वहीं कुछ व्यापारियों ने न तो कन्वर्जन चार्ज दिया और दूसरी तरफ अपनी दुकान 120 स्क्वायर मीटर या कुछ और मीटर से बढ़ाकर 300 स्क्वायर मीटर कर दिया.

इसका मतलब ये कि न तो व्यापारियों ने कन्वर्जन चार्ज दिया, जो कि देना जरूरी था, वहीं कुछ व्यापारियों ने नियमों का उल्लंघन कर अपनी दुकान की साइज बढ़ा दी. एमसीडी ने रेगुलरली न तो कन्वर्जन चार्ज वसूला और न ही इसको लेकर कोई सख्ती दिखाई . साथ ही साथ पार्किंग की व्यवस्था करना ही भूल गई.

इस दौरान कई व्यापारियों ने अपनी दुकान बेच दी तो किसी ने कोई और दुकान खरीदी. यानि जिसने दुकान बेची या जिसने दुकान खरीदी इन दोनों में से किसी ने कन्वर्जन चार्ज नहीं भरा. इसका नुकसान ये हुआ कि जिसने भी दुकान 2014 में खरीदी तो उसको पिछला बकाया भी देना पड़ेगा. एमसीडी ने भी पार्किंग का इंतज़ाम नहीं किया. मतलब व्यापारियों के साथ-साथ एमसीडी भी इसके लिए दोषी है.

क्या है इसका समाधान

समाधान यही है कि मास्टर प्लान में कुछ बदलाव करें जिसमें कन्वर्जन चार्ज नहीं देने वाले के लिए जो 10 गुना जुर्माने का प्रावधान है, उसमें जुर्माना 10 गुना से घटाकर एक या दो गुना कर दिया जाए, जोकि डीडीए ने अपने प्रस्ताव में किया है. वहीं कन्वर्जन चार्ज देने में व्यापारियों को राहत दी जाए, जिसके तहत चार्ज को 4 या 5 किस्तों में देने को कहा जाए.
मास्टर प्लान में जो एरिया वाइज A से लेकर E जो केटेगरी बनाई गई, उसमें A कैटेगरी में आने वाले दुकानों को साल में 6000 रुपये स्क्वायर मीटर के हिसाब से साल का कन्वर्जन चार्ज देना है. मतलब अगर किसी व्यापारी की दुकान 120 स्क्वायर मीटर में है तो उससे एक साल का 6000*120=  इतना पैसा देना होता है.
E कैटेगरी वाले को 1500 स्क्वायर मीटर के हिसाब से देना है, लेकिन केटेगरी को लेकर कन्फ्यूजन है. जिसके मुताबिक खान मार्किट और सुभाष नगर की दुकान एक नहीं हो सकती. जिसको फिर से क्लियर करने की जरूरत है. सिर्फ इन दोनों में बदलाव कर दिया जाए तो करीब आधी से अधिक व्यापारियों की समस्या वहीं खत्म हो जाएगी.

कहां है पेंच

जहां दिल्ली पार्किंग की समस्या से जूझ रही है वहीं अब उन व्यापारियों को राहत देने की बात हो रही है जिन्होंने नियमों का उल्लंघन कर अपने दुकानों की साइज बढ़ा दी. मतलब जिनका 40 स्क्वायर मीटर में था उन्होंने 100 स्क्वायर मीटर कर दी तो किसी ने 100 से बढ़ाकर 200 कर दी तो किसी ने 200 से बढ़ाकर 250 कर दी. यानी जिन व्यापारियों ने नियमों का उल्लंघन कर 2007 में राहत पाई अब वही समस्या फिर से है. यानी 10 साल बाद फिर नियमों में उल्लघंन करने वाले व्यापारियों को छूट देने की तैयारी की जा रही है, जिसमे डीडीए ने FAR में बढ़ोतरी का प्रस्ताव रखा लेकिन फिर वही पार्किंग.

मतलब जिन दुकानदारों ने दुकानों की साइज बढ़ाई है उन्हें FAR बढ़ाने के बाद ग्राउंड फ्लोर में पार्किंग देनी होगी. समस्या यहीं से शुरू होती है क्योंकि जिनको नया बनाना है वो तो बना सकते हैं, लेकिन जिनकी दुकान पहले से बनी है क्या वो दुकान तोड़कर ग्राउंड फ्लोर में पार्किंग बनाएंगे जो कि बड़ी समस्या है और यही है सबसे बड़ा पेंच.

दूसरा ये है कि अगर नियम उल्लंघन करने वाले व्यापारियों को दूसरी बार राहत दी गई तो फिर क्या गारंटी है कि कोई और अपनी दुकान की साइज नहीं बढ़ाएंगे.  यानी जिन व्यापारियों ने नियमों का उल्लंघन कर 2007 में छूट पाई थी, अब दस साल बाद फिर सरकार वही छूट देने की तैयारी में है.

ऐसे में सवाल है कि कहीं तो रुकेगा ये मामला, जिसके लिए सरकार, एमसीडी और व्यापारी तीनों को मिलकर ठोस नतीजा निकलना पड़ेगा, क्योंकि ये कहना गलत नही है कि व्यापारी और एमसीडी अधिकारियों ने मिलकर नियमों को तोड़ा-मरोड़ा.य आज अगर इसका समाधान नहीं किया गया तो फिर हो सकता है कि 10 साल बाद फिर वही स्थिति होगी. जहां आज है वही आगे भी होगा और फिर सुप्रीम कोर्ट को इसमें दखल देना पड़ेगा और सरकारों को ये बताना पड़ेगा कि छूट के नाम पर क्या सरकार दिल्ली को स्लम बनाना चाहती है.