सिटी ब्यूटीफुल चंडीगढ़ में तीसरे मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल का आगाज

ख़बरें अभी तक। चंडीगढ़: सिटी ब्यूटीफुल में तीसरे मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल का शुक्रवार से आगाज हो गया। तीन दिन तक चलने वाले शहर के इस सबसे बड़े फेस्टिवल में देश के लिए लड़ने वाले वीरों को याद किया जाएगा। जबकि कुछ बहादुर योद्धा खुद अपने शौर्य की गाथा बच्चों को सुनाएंगे। फेस्टिवल का उद्घाटन पंजाब के राज्यपाल और चंडीगढ़ के प्रशासक वीपी सिंह बदनौर ने किया।

आर्मी के इस सबसे बड़े इवेंट का आयोजन बीते महीने भर से तीन अलग-अलग चरणों में किया जा रहा है। फ़ेस्टिवल का आयोजन सुखना लेक पर किया जा रहा है। जिसके लिए तीन पंडाल बनाए गए हैं। मौसम को देखते हुए सभी वाटर प्रूफ तैयार किए गए हैं। बच्चों को देशभक्ति से जुड़ी शॉर्ट फिल्में दिखाने के लिए खास थियेटर तैयार किया गया है। हर रोज यहां 10 से 12 फिल्में दिखाई जाएंगी। वहीं यहां आने वालों की फ्री एंट्री होगी लेकिन रजिस्ट्रेशन जरूरी है।

मिलिट्री लिटरेचर फेस्ट में फोटो एग्जीबिशन भी लगाई गई है जहां पर देश के बहादुर सिपाहियों से जुड़े फोटो लगाए गए हैं। 1999 कारगिल युद्ध से जुड़े काफी फोटो यहां देखने को मिल रहे है । चंडीगढ़ निवासी और लौंगेवाला लड़ाई के हीरो ब्रिगेडियर केएस चांदपुरी और कारगिल वॉर के शूरवीर विक्रम बतरा के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी जा रही है। इस दौरान इस प्रदर्शनी को लगवाने वाली कोमल चड्ढा बताती है कि क्यूंकि खुद उनके पति फ़ौज में है इसलिए उन्होंने कोशिश की असल फ़ोटोज़ इक्कठी की जाए और वहीं उन्होंने किया।

प्रदर्शनी में राजस्थान के चुरू जिले में जन्मे जनरल सगत सिंह की वर्दी भी प्रदर्शित की गयी जिसके बारे में उनकी पोती जानकारी दे रही थी। आपको बता दें जनरल सगत सिंह 1961 में गोवा और 1971 में बांग्लादेश की आजादी के अलावा 1967 में नाथुला में चीन के साथ हुई झड़प में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। युद्ध के बाद शांति बहाली कर व्यवस्था कायम करना एक बड़ी चुनौती होती है, लेकिन जनरल सगत सिंह ने इसे बखूबी अंजाम दिया।

उन्होंने कहा कि जनरल सगत सिंह को कई सम्मानों से नवाजा गया है, लेकिन उनके लिए वे भी कम है और उन्हें बहुत गर्व महसूस होता है क्यूंकि उन्होंने मेघना नदी पार कर जंग जीती इसलिए मेरा नाम भी मेघना रखा है। इसी फ़ेस्टिवल में मार्शल डान्स भी आकर्षण का केंद्र बना जहां मराठा, मद्रास,पंजाब और गोरखा रेजिमेंट ने अपने युद्ध की कला दिखाई। बात करे मद्रास रेजिमेंट की तो उन्होंने कलरीपायट्टु का करतब दिखाया और लोगों की काफ़ी वाहवाही लूटी।

इन्होंने ख़ास बातचीत में बताया कि ये केरल में और तमिलनाडु व कर्नाटक से सटे भागों में साथ ही पूर्वोत्तर श्रीलंका और मलेशिया के मलयाली समुदाय के बीच प्रचलित है। इसका अभ्यास मुख्य रूप से केरल की योद्धा जातियों द्वारा, किया जाता था। हालांकि आज पहला दिन था और मौसम भी ख़राब है इसलिए लोग कम संख्या में पहुंच रहे है लेकिन स्कूली छात्र ज़्यादा पहुंच रहे है।