ट्रांसगिरी क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली 28 से शुरू, महिलाएं पहाड़ी व्यंजनों के कार्यों में जुटी

खबरें अभी तक। देवभूमि हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्रों में बूढ़ी दिवाली की धूम शुरू हो गई है। महिलाएं बूढ़ी दीपावली में इस्तेमाल होने वाले पहाड़ी पारंपरिक पोस्टिक आहार को बनाने में जुटी गई है। इन दिनों जिला सिरमौर के पहाड़ी क्षेत्र की महिलाएं मुड़ा शाकुली बिडोली चिवलों आदि बूढ़ी दिवाली में सबसे ज्यादा बनाए जाते हैं। पहाड़ी स्वादिष्ट आहार बहुत इस्तेमाल किया जाता है। बूढ़ी दिवाली में मुड़ा सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है जिसे बनाने के लिए महिलाओं को महीना लग जाता है।

शिलाई क्षेत्र की बात की जाए तो हर गांव में मुड़े का स्वाद अलग अलग मिलेगा, महिलाएं कड़ी मशक्कत के बाद मुड़ा को बनाती हैं ताकि खाने वालों को भी स्वाद आ सके। हर गांव में अपने अपने रीति-रिवाजों के साथ बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है। बता दें की पहाड़ी क्षेत्रों में बूढ़ी दिवाली बड़ी धूमधाम से मनाई जाती हैं। शहरों में जहां दिवाली के शुभ अवसर पर एक दूसरे को मिठाइयां बांटी जाती है और पटाखे फोड़े जाते हैं। वहीं पहाड़ों में मशाल निकालकर पहाड़ी स्वादिष्ट व्यंजनों को एक दूसरे को खिलाकर बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है, ताकि पर्यावरण भी दूषित ना हो।  बूढ़ी दिवाली आपसी भाईचारे को भी बढ़ावा देती है। बूढ़ी दिवाली में सभी लोग अपने अपने गांव में पहुंचते हैं।

मुड़ा बनाते कैसे हैं

बूढ़ी दिवाली में सबसे ज्यादा इस्तेमाल मुड़ा का किया जाता है। जहां शहर में दिवाली में मिठाइयों का प्रयोग करते हैं वहीं ग्रामीण सबसे ज्यादा मुड़े का इस्तेमाल करते हैं मुड़ा बनाने के लिए गांव की महिलाएं इकट्ठे होकर पहले गेहूं को धोती है, फिर धोने के बाद गर्म पानी में घंटों तक उबालती है,  जब तक कि वह चावल की तरह पक ना जाए। पके हुए गेहूं को धूप में 10 से 15 दिनों तक सुखाया जाता है ताकि गेहूं के दाने सख्त हो सके,  उसके बाद फिर उन्हें कढ़ाई में भूना जाता है मुड़े का स्वाद जब कोई एक बार चक लेता है तो बार-बार खाता रहता हैं, लोगों का तो मानना यह भी है कि भरपेट खाना खाने के बावजूद भी लोग एक थाली मुड़े की खा लेते हैं। गांव की महिलाओं ने मुड़ा बनाना शुरू कर दिया है इसके अलावा शाकुली अस्कोली आदि पोस्टिक पहाड़ी व्यंजन बनाए जा रहे हैं.

बड़ी दिवाली के दिन पहाड़ी क्षेत्रों में सभी प्रकार का कल्चर प्रकाशित किया जाता है। दूरदराज इलाकों से लोग बूढ़ी दिवाली की धूम देखने के लिए आते हैं पहाड़ी नाटक पहाड़ी डांस थोड़ा नृत्य इत्यादि लगातार चार-पांच दिन ट्रांस गिरी के इलाकों में किए जाते हैं क्षेत्र के लोगों ने बताया कि जिन स्थानों पर नई दिवाली होती है, बूढ़ी दिवाली के समय सभी लोग हमारे गांव में पहुंचते हैं हमारे पहाड़ी कल्चर का भरपूर आनंद उठाते हैं । आज भी यहां के लोगों ने पहाड़ी संस्कृति को जिंदा रखा है बुजुर्गों द्वारा हर प्रकार की कल्चर या खानपान आज भी इन इलाकों में किए जा रहे हैं, ताकि बुजुर्गों द्वारा किए गए आयोजन सही ढंग से चलते रहे।