महान स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह की 112वीं जयंती आज

ख़बरें अभी तक। शहीद-ए-आजम भगत सिंह की आज 112वीं जयंती है। भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। शहीद भगत सिंह के बलिदान को भारत कभी नहीं भूल सकता है। बॉलीवुड में उनके जीवन पर कई फिल्में बनीं हैं। भगत सिंह सैनिकों जैसी शहादत चाहते थे। वह फांसी की बजाय सीने पर गोली खाकर वीरगति को प्राप्त होना चाहते थे। यह बात उनके लिखे एक पत्र से जाहिर होती है। उन्होंने 20 मार्च 1931 को पंजाब के तत्कालीन गवर्नर से मांग की थी कि उन्हें युद्धबंदी माना जाए और फांसी पर लटकाने की बजाय गोली से उड़ा दिया जाए, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उनकी यह मांग नहीं मानी।

भगत सिंह ने सुखदेव के साथ मिलकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने का फैसला करते हुए लाहौर में सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस जेम्स स्कॉट को मारने की योजना बनाई थी। लेकिन, गलत पहचान के चलते जॉन स्कॉट की जगह असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस जॉन सॉन्डर्स को मौत के घाट उतार दिया। एक सिख होने के बाजवूद उन्होंने अपने बाल कटवाए और अपनी दाढ़ी भी साफ करवा ली, ताकि जॉन स्कॉट को मारने के बाद उन्हें कोई पहचानकर अरेस्ट न कर ले।

जॉन सॉन्डर्स की हत्या के बाद वह भागकर लाहौर से कलकत्ता चले गए थे। इस घटना के एक साल बाद उन्होंने और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली के सेंट्रल असेंबली हॉल में बम फेंका और इन्कलाब जिंदाबाद का नारा बुलंद किया। इस मौके पर उन्होंने अपनी गिरफ्तारी का भी विरोध नहीं किया। बम फेंकने की घटना की जांच के दौरान ही ब्रिटिश अधिकारियों को जॉन सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह कि संलिप्तता के बारे में भी पता चला। अपने ट्रायल के दैरान होने वाली पेशी में भी भगत सिंह ने अपना बचाव करने की जगह आजादी की अपनी विचारधारा को ही प्रचारित-प्रसारित करने का काम किया।

भगत सिंह क्रांतिकारी देशभक्त ही नहीं बल्कि एक अध्ययनशीरल विचारक, कलम के धनी, दार्शनिक, चिंतक, लेखक, पत्रकार और महान मनुष्य थे। उन्होंने 23 वर्ष की छोटी-सी आयु में फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांति का विषद अध्ययन किया था। हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिंतक और विचारक भगतसिंह भारत में समाजवाद के पहले व्याख्याता थे। भगत सिंह अच्छे वक्ता, पाठक और लेखक भी थे। उन्होंने ‘अकाली’ और ‘कीर्ति’ दो अखबारों का संपादन भी किया।

उन्होंने जेल में अंग्रेज़ी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था ‘मैं नास्तिक क्यों हूं’? जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूख हड़ताल की। उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिए थे। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गई। तीनों को तय समय से 11 घंटे पहले 23 मार्च 1931 को शाम 7 बजकर 33 मिनट पर फांसी पर लटका दिया गया।