शहीद की पत्नी को बहन मानकर बंधवाया रक्षासूत्र, बहन को तोहफे में दिया 1 हजार स्क्वायर फीट का दो मंजिला मकान

ख़बरें अभी तक। 1992 में त्रिपुरा में एम्बुश के दौरान शहीद हुए पीर पिपलिया गांव के सीमा सुरक्षा बल के जवान मोहन सिंह सुनेर के निवास पर उनकी शहादत के बाद पहली बार खुशिया लौटी। क्योंकि वन चेक वन साइन फॉर शहीद कैंपियन के करीब 40 से ज्यादा सदस्य उनके घर पहुंचें साथ ही 26 साल बाद प्रशासन के कागजो में शहीद का दर्जा मिडिया की सक्रियता से मिला था। 26 अगस्त 18 को शहीद की विधवा से रक्षा सूत्र बांधकर उसकी रक्षा करने का वचन देने के साथ-साथ बनने वाले दो मंजिला भवन 1हजार स्क्वायर फीट के भवन का भूमिपूजन भी किया था। शहीद के घर जाने के लिए करीब 15 गांव के सदस्य सुबह 11 बजे अपने निजी वाहनों से पहुंचें। जिसके बाद 15 अगस्त 19 को वन चेक वन साइन फ़ॉर सहीद के सदस्यों को शहीद की पत्नी को अपने हथेली जमीन पर रखकर बहन को घर मे प्रवेश करवाया। मकान बनाने में शासन प्रसासन का एक रुपया भी नहीं है। सब जनसहयोग से रुपया इकट्ठा किया गया।

शहीदों की शहादत पर लगेंगे हर बरस मेले वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा यह कहावत तो आपने कई बार सुनी होगी लेकिन कई शहादत ऐसी भी हे जहा आज तक ना तो मेले लगे और नाही उन्हें याद किया गया था देपालपुर के समीप पिरपिपल्या गांव में एक शहीद ऐसे भी थे जिन्हें शहीदी के बाद सब भूल चुके थे। जहां शहीद का पूरा परिवार बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर था। लेकिन शहीदों की याद में कहा जाने वाली वो कहावत फिर सिद्ध हो गई क्योंकि रक्षाबंधन के पर्व पर शहीद के घर आज जो देखने को मिला वह किसी मेले से कम नही लग रहा था। जब युवाओं की टोली तिरंगा हाथों में लेकर देशभक्ति के गीत गाते हुए शहीद के घर राखी बंधवाने पहुचे और अपना दिया वचन पूरा किया। देपालपुर के समीप पीरपिपलिया गांव के सन 1992 में शहीद हुए मोहनलाल सुनेर के घर युवा पहुचे यहा पहुचकर युवाओं ने शहीद सुनेर सिह की पत्नी से राखी बंधवाई और तोहफे में शहीद परिवार को 10लाख रुपये का मकान बनाकर दिया व प्रतिमा के लिए एक लाख रुपये इकट्ठा कर प्रतिमा भी बना दी।