भलखू चायल के समीप झाझा गांव का एक अनपढ़ किन्तु विलक्षण प्रतिभा संपन्न ग्रामीण था

ख़बरें अभी तक। विश्व धरोहर के रूप में विख्यात शिमला-कालका रेल में रविवार को अनूठी साहित्यिक गोष्ठी अनपढ़ इंजीनियर बाबा भलकु की स्मृति में आयोजित की गई। अपने आप में यह अलग तरह का साहित्यिक आयोजन हिमालय साहित्य, संस्कृति एवं पर्यावरण मंच द्वारा आयोजित किया गया। जिसमें हिमाचल के 30 रचनाकार व संस्कृतकर्मी भाग ले रहे हैं। इस गोष्ठी को बाबा भलखू की स्मृति और सम्मान को समर्पित किया गया है। भलखू चायल के समीप झाझा गांव का एक अनपढ़ व्यक्ति था किन्तु विलक्षण प्रतिभा से संपन्न ग्रामीण था।

जिसकी सलाह और सहयोग से अंग्रेज इंजीनियर शिमला कालका रेलवे लाइन के निर्माण में सफल हो पाए थे। यात्रा के दौरान वरिष्ठ और युवा कलाकारों ने अपनी-अपनी रचनाओं की प्रस्तुतियां दी। शिमला से बड़ोग तक की यात्रा में पड़ने वाले स्टेशनों में समरहिल, तारा देवी, कैथलीघाट, कंडाघाट और बड़ोग स्टेशन कविता, गजल, कहानी और संस्मरण के सत्र रखे गए। हिमालय मंच के अध्यक्ष और लेखक एस. आर. हरनोट ने कि हिंदुस्तान तिब्बत रोड के निर्माण के वक्त भी बाबा भलकू के मार्गनिर्देशन में न केवल सर्वे हुआ बल्कि सतलुज नदी पर कई पुलों का निर्माण भी हुआ था।

जिसके लिए उन्हें ब्रिटिश सरकार के लोक निर्माण विभाग द्वारा ओवरशीयर की उपाधि से नवाजा गया था। वर्ष 1947 में सेवानिवृति के उपरांत उनकी सेवायें उस वक्त कालका-शिमला रेलवे लाइन के सर्वेक्षण में ली गयी जब परवाणु से शिमला के लिए चढ़ाई देखकर ब्रिटिश अभियंताओं को समझ नहीं आ रहा था की आगे का सर्वेक्षण कैसे करे। बताया जाता है की भलकु अपनी एक छड़ी से नपाई करता और जगह जगह सिक्के रख देता और उसके पीछे चलते हुए अंग्रेज सर्वे का निशान लगाते चलते। इस तरह जहां ब्रिटिश प्रशासन के धुरंधर इंजिनियर फेल हो गए वहां अनपढ़ ग्रामीण गवंई ने बड़ी सहजता से इस दुसाध्य कार्य को अंजाम दिया था।

हरनोट ने कहा उनकी याद में शिमला से बड़ोग तक या यात्रा चलेगी। वहां दोपहर के भोजन और ठहराव के बाद तीन बजे पुन: शिमला की और रवाना होगी। रेल यात्रा के दौरान जाते हुए और लौटते हुए भी स्टेशनस के नाम पर कविता, ग़ज़ल, कहानी और संस्मरण के सत्र रखे गए हैं जो शिमला से बड़ोग तक समरहिल, तारादेवी, कैथलीघाट, कंडाघाट, कनोह और बड़ोग के नाम पर होंगे।