फोरेंसिक सबूतों  के साथ नहीं हो पाएगी छेड़छाड़, बारकोर्डिंग के माध्यम से फोरेंसिक सैंपल रहेंगे सुरक्षित

ख़बरें अभी तक।  जांच के लिए आने वाले सबूत अब से बार कोड लगाकर आयेंगे जिसकी एफआईआर जानकारी किसी को पता नहीं लग पाएगी। जिससे सबूत की पहचान और वह कहां से आया है किस मामले में आया है इसकी गोपनीयता बनी रहेगी।

पहले इन फोरेंसिक सैंपलों (सबूतों) के साथ पलिस व फोरेंसिक एक्सपर्ट द्वारा मेनोप्लेट करके छेड़छाड़ की जा सकती थी। जिसको रोकने को लेकर मधुबन एफएसएल यूनिट द्वारा यह पहल शरू की गई है। ताकि फोरेंसिक सैंपलों के साथ कोई छेड़छाड़ ना की जा सके। हरियाणा में अभी फ़िलहाल तीन एफएसएल लैब है। जिसमें मुख्य लैब मधुबन पुलिस अकेडमी में है और वही भोड़सी और सुनेरिया में रीजनल लैब है। जिसका काम अभी जारी है वहीं मामलों की अगर बात करें एफएसएल विभाग के पास महीने में 1400 के करीब अलग अलग मामलो आते हैं।

जानकारी देते हुए एडीजीपी व विभाग के डायरेक्टर का कहना है की बार कोडिंग के माध्यम से सब कुछ गोपनीय रहेगा जिसकी जानकारी किसी को भी नहीं रहेगी आम तौर से फोरेंसिक सैंपलों सबूतों के साथ छेड़छाड़ हो जाती थी। लेकिन बार कोडिंग के माध्यम से क्राइम सीन मौजुदा जगह पर घटी घटना से ही पुलिस सैंपल  इक्कठा करने के बाद उस पर बार कोड लगाएगी। जिसके बाद वह एफएसएल लेबोरेट्री के पास जाने के बाद जमा होगा सैंपल पर लगे हुए कोड को सकैन करके उसकी फोरेंसिंक एक्पर्ट जांच करेंगे लेकिन किसी को भी उस सैंपल की पहचान नहीं पता होगी। एक लॉग इन आईडी के माध्यम से सैंपलों के पहचान गुप्त रहेगी।

अभी फ़िलहाल इसे ट्रायल के रूप में शुरू किया गया है। जिसको लेकर अब तक 255 पुलिस थानों को बार कोडिंग के लिए सामान दिए गए है और साथ ही इसके लिए 5500 पुलिस कर्मियों को ट्रेनिंग दी जा रही है। जिससे वह बार कोडिंग को समझ सके।