बर्थडे स्पेशल : शख्स नहीं शख्सियत भारत रत्न सत्यजीत रे

ख़बरें अभी तक । जो नाम परिचय के मोहताज नहीं होते सत्यजीत रे उन्ही नामों में से एक है। सत्यजीत रे एक नाम नहीं बल्कि एक संस्थान हैं और आज यानि 2 मई को सत्यजीत रे का जन्मदिन होता है।अपने देश में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में सिनेमा के चाहने वालों पर उनकी गहरी छाप रही है। सिनेमा और कला के क्षेत्र में रे का योगदान कभी नहीं भुलाया जा सकता! यह उन्हीं की कोशिश है कि इंडियन सिनेमा को विदेशों में भी एक पहचान मिली और सत्यजीत रे को फ़िल्मों में विशेष योगदान देने के लिए ऑस्कर अवॉर्ड तक मिला।

 

 

2 मई 1921 को कलकत्ता (कोलकाता) में पैदा हुए रे को कला और संगीत विरासत में मिला। उनके दादा उपेन्द्र किशोर राय एक लोकप्रिय लेखक, चित्रकार और संगीतकार रहे। पिता सुकुमार राय भी प्रिंटिंग और पत्रकारिता से जुड़े थे। सत्यजीत रे का बचपन काफी संघर्ष और चुनौतियों भरा रहा है। महज 3 साल की उम्र में उनके सिर से पिता का साया उठ जाने के बाद मां सुप्रभा ने उन्हें बड़े ही लाड़ से पाला। पढ़ने-लिखने में वह एक औसत लेकिन, प्रतिभाशाली छात्र रहे। उनकी कॉलेज की पढ़ाई प्रेसीडेंसी कॉलेज में हुई। स्कूल के समय से ही सत्यजीत रे संगीत और फ़िल्मों के दीवाने हो गए। तब सत्यजीत को वेस्टर्न फ़िल्मों और संगीत का चस्का लग चुका था और उसके लिए वह सस्ते बाजार में भटका करते थे। कॉलेज से अर्थशास्त्र की पढाई पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए रे शांतिनिकेतन चले गए और अगले पांच साल वहीं रहे। इसके बाद 1943 में वो फिर कलकत्ता आ गए और बतौर ग्राफिक डिजाइनर काम करने लगे। इस दौरान उन्होंने कई किताबों के कवर डिजाइन किए जिनमें जवाहर लाल नेहरू की ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ भी शामिल है। इसी दौरान उन्होंने 1928 में छपे विभूतिभूषण बंधोपाध्याय के मशहूर उपन्यास पाथेर पांचाली का बाल संस्करण तैयार करने में भी अहम भूमिका निभाई। उसके बाद धीरे-धीरे वो फ़िल्म निर्माण की तरफ झुकते चले गए और रे ने अपने जीवन में 37 फ़िल्मों का निर्देशन किया, जिनमें फ़ीचर फ़िल्में, वृत्त चित्र और लघु फ़िल्में शामिल हैं। इनकी पहली फ़िल्म “पाथेर पांचाली” को कान फ़िल्मोत्सव में मिले “सर्वोत्तम मानवीय प्रलेख” पुरस्कार को मिलाकर कुल ग्यारह अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले। यह फ़िल्म “अपराजितो” और “अपुर संसार” के साथ इनकी प्रसिद्ध “अपु त्रयी” में शामिल है। सत्यजीत रे फ़िल्म निर्माण से जुड़े हर काम में माहिर थे। इनमें पटकथा, कास्टिंग, पार्श्व संगीत, कला निर्देशन, संपादन आदि शामिल हैं। भारत सरकार की ओर से फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में विभिन्न विधाओं के लिए उन्हें 32 राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। सत्यजीत रे दूसरे फ़िल्मकार थे जिन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया।

 

1985 में उन्हें हिंदी फ़िल्म उद्योग के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1992 में उन्हें भारत रत्न भी मिला और ऑस्कर (ऑनरेरी अवॉर्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंट) भी। सत्यजीत रे को उनकी फ़िल्मों के लिए ‘लाइफटाइम अचीवमेंट’ के लिए ऑस्कर से सम्मानित किया गया। जब उनको यह पुरस्कार दिया जाना था, तभी उन्हें दिल का दूसरा दौरा पड़ा था और वह अस्पताल में भर्ती थे। इस ख़बर के बाद ऑस्कर पुरस्कार कमेटी उड़ान भर कर कलकत्ता तक पहुंची और रे को सम्मानित किया। इसके ठीक एक महीने बाद ही 23 अप्रैल 1992 को सत्यजीत रे दिल का दौरा पड़ने के कारण निधन हो गया। आज वह हमारे बीच भले ही मौजूद नहीं हैं, लेकिन उनकी दर्जनों फीचर फ़िल्में, कई वृत्तचित्र और लघु फ़िल्में हमेशा उनकी याद आने वाली कई नस्लों को दिलाती रहेंगी। सत्यजीत रे को उनके फ़िल्मों में ‘लाइफटाईम अचीवमेंट’ के लिए ऑस्कर से सम्मानित किया गया। जब उनको यह पुरस्कार दिया जाना था, तभी उन्हें दिल का दूसरा दौरा पड़ा था और वह अस्पताल में भर्ती थे। इस ख़बर के बाद ऑस्कर पुरस्कार कमेटी उड़ान भर कर कलकत्ता तक पहुंची और रे को सम्मानित किया। इसके ठीक एक महीने बाद ही 23 अप्रैल 1992 को सत्यजीत रे दिल का दौरा पड़ने के कारण निधन हो गया। आज वह हमारे बीच भले ही मौजूद नहीं हैं, लेकिन उनकी दर्जनों फीचर फ़िल्में, कई वृत्तचित्र और लघु फ़िल्में हमेशा उनकी याद आने वाली कई नस्लों को दिलाती रहेंगी।