जानिए, क्या है महिला आरक्षण बिल, आखिर क्यों आज तक नहीं हुआ ये पास

ख़बरें अभी तक। भारत में महिलाएं देश की लगभग आधी आबादी का हिस्सा है, यूं तो ये आधी आबादी कभी शोषण तो कभी अत्याचारों के मामले को लेकर चर्चा में रहती है, लेकिन पिछले कुछ समय से सबरीमाला मंदिर में प्रवेश और तीन तलाक के मामलो को लेकर एक बार फिर महिलाओं की समानताओं का सवाल उठ खड़ा हुआ है। जिसे लेकर आज हम महिला आरक्षण बिल के बारे में बात करेंगे।

तो आइए जानते है क्या है Women reservation bill……..

पहली बार वर्ष 1974 में संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का मुद्दा भारत में महिलाओं की स्थिति आकंलन संबधी समीति की रिपोर्ट में उठाया गया था। पिछले दस से अधिक सालों से शायद ही कोई संसद सत्र होगा जिसमें महिला आरक्षण बिल की बात न उठी हो। ये संविधान के 85 वें संशोधन का विधेयक है। इसके अंतर्गत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटों पर आरक्षण का प्रावधान रखा गया है।

इसी 33 फीसदी में से एक तिहाई सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षित की जानी है। जिस तरह से इस आरक्षण विधेयक को पिछले कई सालों से बार-बार पारित होने से रोका जा रहा है या फिर राजनीतिक पार्टियों में इसे लेकर विरोध है इसे देखकर यह लगता है कि शायद ही यह कभी संसद में पारित हो सके। बता दें कि पहली बार इस विधेयक को देवगौड़ा के नेतृत्व वाली लोकसभा में 1996 में पेश किया गया था तब भी सत्तारूढ़ पक्ष में एक राय नहीं बन सकी थी। तब भी विधेयक की खिलाफत शरद यादव ने की थी और पिछले वर्ष जब बिल पेश किया जा रहा था तब भी शरद यादव ने ही इसका विरोध किया था।

वहीं जब वर्ष 1998 में इस विधेयक को पेश करने के लिए तत्कालीन कानून मंत्री थंबी दुरै खड़े हुए थे तब संसद में इतना हंगामा हुआ और हाथापाई भी हुई उसके बाद उनके हाथ से विधेयक की प्रति को लेकर लोकसभा में ही फाड़ दिया गया था। लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण के लिए संविधान संशोधन करने का यह सबसे अच्छा समय है। महिला आरक्षण के लिए संविधान संशोधन 108 वां विधेयक राज्यसभा में पहले से पारित है। यह विधेयक 2010 में राज्यसभा में पारित हुआ, पर तब यह लोकसभा में पारित नहीं हो पाया था और 2014 में लोकसभा भंग होने के साथ ही यह रद्द हो गया था।

क्योंकि राज्यसभा स्थायी सदन है, इसलिए यह बिल अभी जिंदा है। अब लोकसभा इसे पारित कर दे, तो राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून बन जाएगा। 2019 के लोकसभा चुनाव नए कानून के तहत हो सकते हैं और नई लोकसभा में 33 फीसदी महिलाएं आ सकती हैं। लेकिन ऐसा करने के लिए अब सिर्फ एक साल का समय ही बचा है।

वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने महिल आरक्षण पर कहा था कि केंद्र में कांग्रेस की सरकार आएगी, तो वह महिला आरक्षण बिल लाएगी। महिला आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक लाने वाली पार्टी होने के नाते इस मायने में कांग्रेस की प्रतिबद्धता जाहिर है। अपनी सरकार रहते हुए कांग्रेस इसे राज्यसभा में पारित भी करा चुकी है। इसके अलावा कांग्रेस की सरकार 1993 में ही पंचायतों में महिला आरक्षण लागू कर चुकी है, जो पंचायतों में सफलतापूर्वक चल रही है। कांग्रेस पार्टी पहले से ही महिला आरक्षण बिल के समर्थन में रही है और अब राहुल गांधी की चिट्ठी ने इसपर मुहर लगा दी है।

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी हमेशा से महिलाओं की पक्षधर रही हैं। उनका कहना है कि भारत में महिलाओं को और ताकतवर बनाने की जरूरत है। उन्होंने पिछले सत्र में मोदी सरकार से मांग की थी कि महिला आरक्षण बिल को पास किया जाए। संसद में महिलाओं का औसत देखें तो विश्व का औसत जहां 22.6 फीसदी है। इंटर पार्लियामेंटरी यूनियन की रिपोर्ट के मुताबिक, संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में दुनिया के 193 देशों में भारत का स्थान 148वां है।

संसद में महिलाओं के आंकड़ें देखें तो रवांडा 63 फीसदी के स्तर पर हैं और नेपाल में 29.5 फीसदी महिलाएं संसद में हैं। अफगानिस्तान में 27.7 फीसदी और चीन की संसद में 23.6 फीसदी महिला सांसद हैं। पाकिस्तान में भी संसद में 20.6 फीसदी महिला सांसद हैं। वहीं भारत का औसत केवल 12 फीसदी है। वहीं इन तमाम अड़चनों के चलते महिला आरक्षण विधेयक एक सत्र से दूसरे सत्र और एक लोकसभा से दूसरी लोकसभा तक टलता जा रहा है। राजनीति में महिला भागीदारी कम होने का कारण है कि महिला आरक्षण बिल 22 वर्षों से अटका हुआ है।

1996 में पहली बार पेश होने के बाद और 2010 में राज्यसभा से पास होने के बाद भी यह दुबारा लोकसभा से पास नहीं हो पाया। इसकी बड़ी वजह सपा, बसपा और आरजेडी का कड़ा विरोध और कोटे के भीतर कोटे की मांग था, जिसके चलते ये बिल अधड़ में लटका हुआ है और हर चुनाव में महिला आरक्षण बिल एक बड़ा मुद्दा बनता है। हर लोकसभा में इसे लाने की और फिर इसे पास करवाने की बात की जाती है। जानकारों का यह भी मानना है कि लोकसभा में सत्ताधारी गठबंधन को पूर्ण बहुमत हासिल है, यानी नरेंद्र मोदी सरकार पूर्ण बहुमत की सरकार है और उसके सामने वह दिक्कत नहीं है, जो मनमोहन सरकार को थी।

वहीं मनमोहन सरकार में कांग्रेस का अपना बहुमत नहीं था और कई समर्थक दल महिला आरक्षण विधेयक को मौजूदा रूप में पारित करने के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन मौजूदा लोकसभा में न सिर्फ सत्ताधारी गठबंधन का बहुमत है, बल्कि सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी भी महिला आरक्षण के समर्थन में है। इसके अलावा वामपंथी दल भी महिला आरक्षण लागू करना चाहते हैं। ऐसे में यह सरकार पर है कि वह महिला आरक्षण के लिए संविधान संशोधन बिल लाए। इसके बिना भारत में संसद और विधानसभाओं में महिलाओं का समुचित प्रतिनिधित्व संभव नहीं दिखता।