ढोल और नगाड़ो की थाप पर मनाई जाती है लोहड़ी, जानें पर्व मनाने के पीछे का महत्व

ख़बरें अभी तक। मकर सक्रांति एक ऐसा त्योहार है,जिसे देश के हर कोने में मनाया जाता है। इसे हर स्थान पर अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। कहीं पर लोहड़ी तो कहीं पर खिचड़ी के नाम से मनाया जाता है। असम में लेहड़ी को माघ बिहू के नाम से जाना जाता और तमिलनीडु में इस त्योहार को पोंगल के रुप में चार दिन तक मनाया जाता है। लोहड़ी मकर संक्रांति के एक दिन पहले 13 जनवरी को मनाई जाती है। ये उत्तर भारत के पंजाब क्षेत्र का एक प्रसिद्ध त्योहार है। पौष के अंतिम दिन सूर्यास्त के बाद यानि माघ संक्रांति से पहले यह पर्व मनाया जाता है। ये पर्व फसलों के पकने के उत्सव के रुप में तो मनाया ही जाता है साथ ही इसमें माता सती के रुप में एक बेटी के स्वाभिमान से जुड़ी भावना है तो सुंदर मुंदर और दुल्ला भाटी की कहानी भी मौजूद है जिसमें बेटियों के सम्मान की झलक मिलती है।

इस त्योहार में आने वाले तीनो अक्षरों का एक अलग अर्थ है जिनसे ये त्योहार जुड़ा हुआ है। इनमें ‘ल’ का अर्थ है लकड़ी , ‘ओह’ का मतलब है गोहा यानी सूखे उपले और ‘डी’ होती है रेवड़ी जिनसे मिल बनता है ।इतना ही नहीं पूजा में प्रयुक्त इन तीनों चीजों, लकड़ी, उपले और रेवड़ी का एक विशेष अर्थ है जैसे लकड़ी और उपले का प्रयोग पौराणिक कथा के संदर्भ में दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि में सती होने की याद में अग्नि जलाने के लिए किया जाता है। जबकि रेवड़ी का मूंगफली और मक्के के भुने दानों के साथ  अग्नि की भेंट किए जाने वाले समान के तौर पर और फिर प्रसाद के रूप में लोगों को बांटने के लिए किया जाता है।इस दिन पूजा करने के लिए लकड़ियों के नीचे गोबर से बनी लोहड़ी की प्रतिमा रखी जाती है।

जिसमें गटनि प्रज्‍जवलित करके भरपूर फसल और समृद्धि के लिए उसकी पूजा होती है। इस आग की सभी परिक्रमा करते हैं जिसके दौरान लोग तिल, मक्‍का और गेहूं जैसे अनाज डालते हैं। लोहड़ी पर पूजा के बाद गजक, गुड़, मूंगफली, का प्रसाद चढ़ाया जाता हैं, फिर इस समय रेवड़ी, मूंगफली, लावा आदि खाए भी जाते हैं। नई बहू और नवजात बच्चे के लिए लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। इस दौरान ये विशेष गीत गाये जाते हैं जो लोहड़ी से जुड़ी कथाओें पर आधारित होते हैं। इन गीतों में बेटियों के प्रति प्रेम की भावना छुपी है। “सुंदर मुंदरिये होय, तेरा कौन बेचारा होय। दुल्ला भट्टी वाला होय, दुल्ले धी बिआई होय। सेर शक्कर पाई होय, कुड़ी दे बोझे पाई होय, कुड़ी दा लाल हताका होय। कुड़ी दा सालु पाटा होय, सालू कौन समेटे होय।” जैसे गाने गाए जाते है।